कभी गमो का साया भी
नहीं पड़े तुम पर।
खुशी की गीत गाओ
उदासियों की महफ़िल में।
बहुत सुकून मिलेगा
मायूसो के चेहरे पर।
महफ़िल में रोनक आ जायेगी
तुम्हारे गीतों को सुनकर।।
मिले गमो का साया भी,
उसको भी गीत बना लेंगे।
तेरी जुल्फों की साया में
हम सारी रात बिता देंगे।
क्योंकि सुनकर तुम्हारे गीत
मै मोहित हो गया हूँ।
भूल गया सारे गमो को
और दिवाना हो गया हूँ।
दिलकी धड़कनो में अब
तुम ही तुम धड़क रही हो।।
अब मुझे न नींद आ रही
न ही मन मेरा लग रहा है।
अब तेरी याद सता रही है
और बेचैनी बड़ा रही है।
मुझे अपना मीत बना लो
होठों से मेरे गीत सजा लो।
तुम्हारी बेचैनी मिट जायेगी
जब दिलमें शमा जाओगी।।
अब तुम्हें देखकर लिखता हूँ।
और बस तुम्हें ही गाता हूँ।
आवाज़ मेरी होती है
पर दिलसे तुम गवाते हो।
और मेरी वाह-2 करवाते हो।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)