
बहती हुई नर्मदा की धारा,
नदी तट के घाट,
गाँव के मन्दिर और मोहल्ले,
और न जाने क्या-क्या!
अरे! घुमावदार रास्ते और
गाँव की पगडंडियाँ,
उनमें एक चढ़ाव-उतार वाली गली।
गाँव में प्रेम से चाय पिलाते लोग,
अमाड़ी की भाजी और रोटी ज्वार की,
मीठी गट चाय और पाती मनुहार की।
मधुर-मधुर निमाड़ी लोकगीत,
और शाम ढलते ही मंदिरों में
बूढ़ी अम्मा-बहनों के भजनों के स्वर,
ककड़ी, भुट्टे, मिर्ची, कपास और तुम।
अरे हाँ! खंडहर में बने मन्दिर,
और मंदिरों की बासंती घंटियाँ,
संकरी गलियाँ और उन गलियों में
प्रेम का विशाल दिल।
गुज़रते हुए गाँव बुलाते हैं,
गाँव के लोग और लोगों में
प्रेम का असीमित भण्डार,
मानो ख़ज़ाना खोल देने का सामर्थ्य।
बुलाता है गाँव, खेत और खलिहान,
निमाड़ बुलाता है,
बहुत याद आता है….
#डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
