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सूख गई धरती आसमां उदास है
प्यासे हुए मानव लगी प्यास है
क्यों ये अब सारे जंगल कट गए है
सुकून भी नहीं गर्मी का अहसास है
नम हो गई है आँखे मनुहर दृश्य नहीं
आलम ये देख लो खो गया मधुमास है
बूंद बूंद पानी को तरस रहा ये जमाना
भला बिसलेरी का पानी किस के पास है
शर्म की बात भारत में पानी बिक रहा
आम आदमी की सुध नहीं कहते है खास है
क्यो छेड़ते हो प्रकृति को सोचो
अब होश है किसी को ना हवास है
#किशोर छिपेश्वर ‘सागर’
परिचय : किशोर छिपेश्वर ‘सागर’ का वर्तमान निवास मध्यप्रदेश के बालाघाट में वार्ड क्र.२ भटेरा चौकी (सेंट मेरी स्कूल के पीछे)के पास है। आपकी जन्मतिथि १९ जुलाई १९७८ तथा जन्म स्थान-ग्राम डोंगरमाली पोस्ट भेंडारा तह.वारासिवनी (बालाघाट,म.प्र.) है। शिक्षा-एम.ए.(समाजशास्त्र) तक ली है। सम्प्रति भारतीय स्टेट बैंक से है। लेखन में गीत,गजल,कविता,व्यंग्य और पैरोडी रचते हैं तो गायन में भी रुचि है।कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं। आपको शीर्षक समिति ने सर्वश्रेठ रचनाकार का सम्मान दिया है। साहित्यिक गतिविधि के अन्तर्गत काव्यगोष्ठी और छोटे मंचों पर काव्य पाठ करते हैं। समाज व देश हित में कार्य करना,सामाजिक उत्थान,देश का विकास,रचनात्मक कार्यों से कुरीतियों को मिटाना,राष्ट्रीयता-भाईचारे की भावना को बढ़ाना ही आपका उद्देश्य है।
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Thu May 9 , 2019
जिंदगी में सदा, मुस्कराते रहो। फासले कम करो, दिल मिलते चलो।। दर्द कैसा भी हो, आंखे नम न करो। रात काली ही सही, पर गम न करो। एक सितारा बनो, जगमगाते रहो। फासले काम करो, दिल मिलते चलो।। जिंदगी में सदा……।। बाटना है अगर, बाट लो हर खुशी। गम न […]