बहुत दूर है तुम्हारे घर से,
हमारे घर का किनारा ,
पर हवा के हर झोंके से ,
पूछ लेते हैं मेरी जान, हाल तुम्हारा।
लोग अक्सर कहते हैं,
जिन्दा रहे तो फिर मिलेंगे,
पर मेरी जान कहती है,
निरंतर मिलते रहे, तो ही जिन्दा रहेंगे।
दर्द कितना खुशनसीब है,
जिसे पाकर अपनों को याद
करते हैं,
दौलत कितनी वदनसीब है ,जिसे
पाकर लोग,
अक्सर अपनों को भूल जाते हैं।
इसलिए तो छोड़ दिया सबको,
बिना वजह परेशान करना,
जब कोई हमें अपना समझता ही नहीं,
तो उसे अपनी याद दिलाकर भी
क्या करना।
जिंदगी गुजर गई, सबको खुश
करने में,
जो खुश हुए वो अपने नहीं थे,
और जो अपने थे मेरी जान,
वो भी खुश नहीं हुए।
इसलिए संजय कहता है,
कर्मो से डरिए , ईश्वर से नहीं,
ईश्वर माफ़ कर देता है,
परन्तु खुद के कर्म नहीं।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।