(तर्ज: क्या मिलिये ऐसे लोगो से….)
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
और पुत्र इन सब का,
कैसे अदा करते है कर्ज।
भेज उन्हें बृद्धाश्रम में,
फिर भी कहलाते पुत्र।।
कलयुग की महिमा तो देखो,
बिना फर्ज भी पुत्र बने रहते।
क्या ऐसे पुत्रो को भी,
पुत्रो की श्रेणी में हम रखे।
पुत्र मोह को त्याग करके,
अपने आप में जीना सीखो।
तभी स्वाभिमान से हम,
जिंदगी को जी पायेंगे।।
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
पुत्र यदि तुम सही में हो तो,
पुत्र धर्म तुम निभाओ।
बनकर श्रवणकुमार जैसे तुम,
माता पिता की सेवा करो।
तभी तुम कलयुग में भी,
सतयुग जैसे पुत्र कहलाओगे।
सेवा भक्ति उनकी करके,
उनके पुत्र बन पाओगे।।
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
पुत्रवधु को भी कर्तव्य,
पुत्र निभाने नहीं देते।
झूठी शान की खातिर,
रिश्तों से दूर कर देते ।
ऐसे पुत्र और पुत्रवधु को,
उनके बंधन से मुक्त करो।
छीन के उनके हक को,
उन्हें पद से मुक्त करो।।
कितनो के पुत्र आजकल,
करते मां बाप की सेवा।
सब कुछ उन पर लूटकर,
खुद बन जाते है भिक्षुक।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।