क्या क्या सुने और क्या कहे, इस दुनियां के लोगों को ।
क्योकि कोई किसी को, सुनने को तैयार नही।
सब को अपनी अपनी, बाते ही कहना है /
और अपनी ही प्रसन्नता, को सिर्फ सुनना है।
आज कल साहित्य साहित्यकार, बीनमोल बिक रहे है /
अपनी बोलियां बाजार में, खुद लगवा रहे है।
आगे क्या होगा अंजाम, क्या कोई बाता सकेगा /
इस गिरते समय और, परिदृश्य को कोई बचाएगा ।।
तू मै श्रेष्ठ के चक्कर में, लुप्त हों रहे है विध्दमान ।
अब साहित्य की इस बगिया को, कौन महकायेगा /
देश की कला संस्कृति साहित्य को, कौन बचाएगा /
क्या इस कलयुग में कोई, कालिदास बनकर आएगा //
और कला साहित्य की गिरती, हुई साख को बचाएगा //
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।