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सोचते सोचते रात सारी गुज़र गई।
नींद आँखों से न जाने किधर गई।
मलाल रूह को था, तेरे बिछङने का
जिंदगी भी मेरी, साथ ही बिखर गई।
बेमुरव्वत लोगों की भीङ जमा तो थी
तन्हा थे हम ,जहां तक नज़र गई।
सकून दिल का तलाश में चले थे हम
झोली मगर आँसूऔं से भर गई।
ज़लज़ले ऐसे ऐसे आते है ज़हन में
देख जिंदा हो कर भी ,कैसे मैं मर गई।
#सुरिंदर कौर
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