ऐ किसान पुत्र आजा,
चल सेना में भर्ती हो..
तेरी रोटी की समस्या
चुटकी में होगी हल..
और सुन आदिवासी
तू बहुत भूख-भूख चिल्लाता है,
बहुत विनोबा भावे बनता है..
जंगल-जंगल करता है,
विकास के पथ पर तू
बहुत अवरोध खड़े करता है..
सुन,तू अपने दम पर बंदूक उठा
चल आ नक्सली बन जा..
हम तुझे हथियार देंगे।
सैनिक देखता क्या है उठा बंदूक,
ये नक्सली है ये विकास विरोधी है..
इसे मारना तेरा धर्म है,
बस ये एक सुकर्म है।
नक्सली तू घात लगा,
इस सैनिक को
एक बार में मौत की नींद सुला..
यूँ ही लाशों का ढेर लगता जाएगा,
कोई एक भी नेता की लाश
क्या वहां ढूंढ पाएगा।
हम विकास का ढोंग रच रहे हैं,
दोनों ओर से किसान पुत्र मर रहे हैं..
सत्ता का खेल बड़ा अनोखा है,
जनता नहीं जानती यहां..
क्या-क्या धोखा है।
अब जनता को संभलना होगा,
हत्याओं का सिलसिला
बन्द करना होगा..
कब तक शिकार होंगे आमजन?
कभी नस्ल,कभी नक्सल के नाम पर
कब चुनी जाएगी सरकारें,
यहां आमजन की जरुरत के नाम पर।
#संदीप तोमर
परिचय : 1975 में दुनिया में आने वाले संदीप तोमर गंगधाडी जिला मुज़फ्फरनगर(उत्तर प्रदेश ) से वास्ता रखते हैं एमएससी(गणित), एमए (समाजशास्त्र व भूगोल) और एमफिल (शिक्षाशास्त्र) भी कर चुके श्री तोमर कविता,कहानी,लघुकथा तथा आलोचना की विधा में अधिक लिखते हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में ‘सच के आसपास (कविता संग्रह)’,’टुकड़ा-टुकड़ा परछाई(कहानी संग्रह)’उल्लेखनीय है। साथ ही शिक्षा और समाज(लेखों का संकलन शोध प्रबंध),कामरेड संजय (लघु कथा),’महक अभी बाकी है’ (सम्पादित काव्य संग्रह), ‘प्रारंभ’ (साझा काव्य संग्रह),’मुक्ति (साझा काव्य संग्रह)’ भी आपकी लेखनी की पहचान है। वर्तमान में आप नई दिल्ली के उत्तम नगर में रहते हैं।