हर पल जो मस्ती में झूमे,वह मधुमास कहां से लाऊं।
जो प्रीतम का द्वार न छोड़े,ऐसी प्यास कहां से लाऊं।।
मधु–सरिता रस घोला करती,
संग हवा के डोला करती..
झिंगुर गाते गीत सुहाने,
नदिया के तट मीत पुराने..
मेरा मन आह्लादित कर दे,वो अहसास कहां से लाऊं,
हर पल जो मस्ती में झूमे….।।
कूलों से लहरें टकराती,
संग किनारे मौज मनाती..
सूरज पीता घूँट निशा के,
छूटे सब संकोच दिशा के..
आंधी में दीपक-सा जलता,वह विश्वास कहां से लाऊं..
हर पल जो मस्ती में झूमे….।।
चरणों में फूलों-सा बिछ कर,
मग के सारे कांटे चुनकर..
सागर की लहरों को छू ले,
नभ की मर्यादा को पी ले..
हर पल को उत्सव-सा कर दे,वह उल्लास कहां से लाऊं..
हर पल जो मस्ती में झूमे,वह मधुमास कहां से लाऊं।
जो प्रीतम का द्वार न छोड़े,ऐसी प्यास कहां से लाऊं।।
#चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री
परिचय : चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री को लिखते हुए काफी समय हो गया हैl आपकी प्रकाशित पुस्तकें-ओशो दर्पण,वान्या (काव्य संग्रह),सच्ची बात(लघु कथा संग्रह) है तो,`गुनगुनी धूप के साये`
(गीत-गजल संग्रह) और ‘कवितालोक: प्रथम उद्भास’ भी हैl आप अपने लेखन के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा तो पुरस्कृत की ही गई,साथ ही अन्य संस्थाओं से भो सम्मान पाया हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं,कहानियां व आलोचनाएं आदि प्रकाशित होती है,तो स्तम्भ लेखन भी जारी हैl पंचकूला, हरियाणा में आप रहती हैं और सेवानिवृत सहायक प्राध्यापक व पूर्वाध्यक्ष हिन्दी विभाग हैंl