कभी दिल में तुम्हारे सब, कभी दिल में हमारे सब,
मुहब्बत में सनम दिखते हैं,अब बंजर नज़ारे सब।
गई हो छोड़ के जब से,यहाँ मातम-सा मंजर है,
कि अब रोती हैं रातों को,मेरे घर की दीवारें सब।
कभी मिलना-मिलाना था,जहाँ यारों सुनो अपना,
तड़पते खूब हैं हरपल,वहाँ साहिल किनारे सब।
दिया था जन्म उसने और,नाजों से भी पाला था,
बुढ़ापे में गए हैं छोड़,माँ को बे-सहारे सब।
अभी तो है ज़िंदा हम पर,जल्दी ही मर जाएंगे सब,
सुनो मुझसे रही थी कह,दिल्ली की मीनारें सब।
#विवेक चौहान
परिचय : विवेक चौहान का जन्म १९९४ में बाजपुर का है। आपकी शिक्षा डिप्लोमा इन मैकेनिकल है और प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में नेपाल में ही कार्यरत हैं। बतौर सम्मान आपको साहित्य श्री,साहित्य गौरव,बालकृष्ण शर्मा बालेन्दु सम्मान सहित अन्य सम्मान भी मिले हैं। आपके सांझा काव्य संग्रह-साहित्य दर्पण,मन की बात,उत्कर्ष की ओर एवं उत्कर्ष काव्य संग्रह आदि हैं। आप मूल रुप से नई कालोनी (चीनी मिल कैम्पस) बाजपुर (जिला ऊधमसिंह नगर,उत्तराखण्ड)में रहते हैं।