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जीवन के कुछ पन्नों पर
कुछ लकीरें बन जाती हैं
कुछ टेढ़ी-मेढी
कुछ ऊबड़-खाबड़
मिटती बनती लकीरें
आती-जाती रहती हैं लकीरें
हिचकोले खाती हुई लकीरें
फिर भी हौसला अफजाई करती
ये लकीरें
चुपचाप चलती हैं
जीवन की गति की निरंतरता में।
#आराधना राय” बलियावी”बलिया ,उत्तर प्रदेश
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