. …..….
उत्सव फाग बसंत तभी
जब मात महोत्सव संग मने।
जीवन प्राण बना अपना,
तन माँ अहसान महान बने।
दूध पिये जननी स्तन का,
तन शीश उसी मन आज तने।
धन्य कहें मनुजात सभी,
जन मातु सुधीर सुवीर जने।
. …..…..
भाव सुनो यह शब्द महा,
जनमे सब ईश सुसंत जहाँ।
पेट पले सब गोद रहे,
अँचरा लगि दूध पिलाय यहाँ।
मात दुलार सनेह हमें,
वसुधा मिल मात मिसाल कहाँ।
मानस आज प्रणाम करें,
धरती बस ईश्वर मात जहाँ।
. …..….
पूत सुता ममता समता,
करती सम प्रेम दुलार भले।
संतति के हित जीवटता,
क्षमता तन त्याग गुमान पले।
आँचल काजल प्यार भरा,
शिशु देय पिशाच बलाय टले।
आज करे पद वंदन माँ,
पद पंथ निशान पखार चले।
. …..…..
पूत सपूत कपूत बने,
जग मात कुमात कभी न रहे।
आतप शीत अभाव घने,
तन जीवन भार अपार सहे।
संत समान रही तपसी,
निज चाह विषाद कभी न कहे।
जीवन अर्पण मात करे,
तब क्यों अरमान तमाम बहे।
…………
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः