सृष्टि का यह……

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vipin sharma
सृष्टि का यह चक्र अद्भुत है समझ ले,
यह समय के साधकों के संग चला है।
हाथ की रेखाओं के बल जो खड़ा है,
वक्त ने अब तक उसी को ही छला है।
व्यर्थ तेरी कुंडलियों की समय गणना,
अगले पल होना क्या किसने कहा है।
ताश के पत्ते तूफानों में खड़े हैं,
महल पक्की नींव का क्षण में ढ़हा है।
कर्म पर तू रख भरोसा छोड़कर भय,
बस इसी छैनी से तेरा कल ढला है।
सृष्टि का यह….
जब भी तुझको असफलताओं ने घेरा,
दोष तूने भाग्य रेखा पर मढ़ा है।
शिखर पर वह भी है जिसके कर नहीं हैं,
अब बता किन सीढ़ियों से वह चढ़ा है।
जीत जाता मन के बल वह दौड़ कर के,
जो कि जन्म से ही बिन पैरों पला है।
सृष्टि का यह……
रात की परछाई का प्रतिफल सवेरा,
उजियारा पाने को न जगना पड़ा है।
नींद को जब चाहिए तेरे अंधेरा,
रोशनी से तब तू ही लड़ने खड़ा है।
सोंच से तू रेत की परतें हटा दे,
रेत के नीचे ही नीर का सिलसिला है।
सृष्टि का यह…..
विघ्न राहों में मिले कभी थी सुगमता,
इस सफर में न थी तेरे एकरूपता।
तूने किस्मत से नहीं पाई थी सत्ता,
जीत पाया क्योंकि तूझमें थी क्षमता।
उसके हाथों की लकीरें मिट गई हैं,
जिसने हाथों को निराशा में मला है।
सृष्टि का यह……..
विपिन वत्सल शर्मा*
    *सागवाड़ा*

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