एक अख़बार में निविदा विज्ञापन,
दहेज़ के दानव के विनाश हेतु
चाहिए एक बाण..
ऐसी निविदा पढ़ने के बाद
दिल को हुआ आराम।
वर्तमान परिदृश्य में,
बहुएं जली-जलाई जा रही..
ऐसे हादसों के कारण गांवों के
कुएं की चरखियां,घट्टियों की आवाजें,
ख़त्म होती जा रही।
बाजारों में फ्रेमों के,कब्र के और पत्थरों के,
दाम यकायक बढ़ते जा रहे..
सूने घर और आँचल में कैसे छुपे बच्चे
छुपा-छाई का खेल वो खोते जा रहे..
रिश्तों में कड़वाहट-लालची युग का
विष घुलता जा रहा।
लगने लगा जैसे दहेज़ के लालची,
दानवों का दायरा बढ़ता जा रहा..
बढ़ते हुए दायरों को न रोक पाने का,
कारण यह भी हो सकता है
कलयुग में बाण चलाना आता नहीं,
या लोग डरपोक बन भागते जा रहे।
निविदा की तिथियां बढ़ती जा रही,
अब संशोधनों के साथ..
दहेज़ के दानवों के विनाश हेतु,
चाहिए अब तरकशों से भरे बाण..
इंतजार है,कोई तो आएगा खरीदने
तभी ख़त्म हो सकेगी,
दहेज़ के दानवों की विनाशलीला..
और बेटियां होगी हर घरों में
सुरक्षित।
#संजय वर्मा ‘दृष्टि’
परिचय : संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ धार जिले के मनावर(म.प्र.) में रहते हैं और जल संसाधन विभाग में कार्यरत हैं।आपका जन्म उज्जैन में 1962 में हुआ है। आपने आईटीआई की शिक्षा उज्जैन से ली है। आपके प्रकाशन विवरण की बात करें तो प्रकाशन देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाओं का प्रकाशन होता है। इनकी प्रकाशित काव्य कृति में ‘दरवाजे पर दस्तक’ के साथ ही ‘खट्टे-मीठे रिश्ते’ उपन्यास है। कनाडा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता की है। आपको भारत की ओर से सम्मान-2015 मिला है तो अनेक साहित्यिक संस्थाओं से भी सम्मानित हो चुके हैं। शब्द प्रवाह (उज्जैन), यशधारा (धार), लघुकथा संस्था (जबलपुर) में उप संपादक के रुप में संस्थाओं से सम्बद्धता भी है।आकाशवाणी इंदौर पर काव्य पाठ के साथ ही मनावर में भी काव्य पाठ करते रहे हैं।