तुम मेरे ही अंश हो प्यारे!,
और मेरा मूल वंश ।
फिर हमको क्यों देते तुम हो ,
उपेक्षा , उलाहना दंश ?
उपेक्षा , उलाहना दंश ?
कंश जैसा व्यवहार करते हो?
जो तुम्हें जना पाला पोसा ,
एकांत जेल में उसे रखते हो ?
कहै ‘भवन’ यह कर्म लोक है ,
कर रहे कुकर्म जैसा तुम ।
तेरी सन्तति भी तेरे संग ,
करेगी वैसा ही रोना न तुम ?
परिचय : रामभवन प्रसाद चौरसिया का जन्म १९७७ का और जन्म स्थान ग्राम बरगदवा हरैया(जनपद-गोरखपुर) है। कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक का है। आप उत्तरप्रदेश राज्य के क्षेत्र निचलौल (जनपद महराजगंज) में रहते हैं। बीए,बीटीसी और सी.टेट.की शिक्षा ली है। विभिन्न समाचार पत्रों में कविता व पत्र लेखन करते रहे हैं तो वर्तमान में विभिन्न कवि समूहों तथा सोशल मीडिया में कविता-कहानी लिखना जारी है। अगर विधा समझें तो आप समसामयिक घटनाओं ,राष्ट्रवादी व धार्मिक विचारों पर ओजपूर्ण कविता तथा कहानी लेखन में सक्रिय हैं। समाज की स्थानीय पत्रिका में कई कविताएँ प्रकाशित हुई है। आपकी रचनाओं को गुणी-विद्वान कवियों-लेखकों द्वारा सराहा जाना ही अपने लिए बड़ा सम्मान मानते हैं।