क्या गति कर डाली है हिन्दी की हिंदुस्तान में,
क्षत-विक्षत हो हिन्दी रोती इंग्लिश के कूड़ेदान में।
इंग्लिश यहाँ संभ्रांतों की अब भाषा समझी जाती है,
हिन्दी हर एक सभा में अब जाने से कतराती है।
पहन मातृभाषा का चोला दर-दर की ठोकर खाती है,
गैरों की है क्या बिसात,अपनों से कुचली जाती है।
हिन्दी के सम्बोधन सारे हाय-हैलो ने गटक लिए,
रिश्तों के थे बहुआयाम,वो भी अंकल-आंटी हो लिए।
आभार,क्षमा,धन्यवाद और खेद अब नहीं करते,
सॉरी और थैंक्स की बैसाखी पर हम सब चलते।
सारा ज्ञान धरा रह गया,जो इंग्लिश न कह पाए,
इंग्लिश में बक-बक जो करता,ज्ञानी वो समझा जाए।
हिन्दी को अब स्कूलों ने भी नकार सिरे से डाला है,
भारत में अब कौन बचा,जो हिन्दी का रखवाला है।
हिन्दी-हिन्दी-हिन्दी करते हिन्दी के पखवाड़े में,
बाकी दिन हिन्दी रहती है पड़ी किसी कबाड़े में।
बिन इंग्लिश के यहाँ कोई अब नौकर भी न बन पाए,
जो थोड़ा पढ़-लिख लेता है,अब राम राम में शरमाए।
भारत तो आज़ाद हुआ,पर निज भाषा गुलाम हुई,
इंग्लिश जिसे नहीं आती,वो जनता अब बेकाम हुई।
बस एक विनती है मेरी,निज भाषा का भी ध्यान धरो,
भले इंग्लिश के तलवे चाटो,पर हिन्दी का सम्मान करो…
पर हिन्दी का सम्मान करो,पर हिन्दी का सम्मान करो..।
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।
Bhut sundar
n Yup
पहन मातृभाषा का चोला दर-दर की ठोकर खाती है,
गैरों की है क्या बिसात,अपनों से कुचली जाती है।