नज़्म मिले

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satindar
इंसाँ हूँ ज़िन्दगी जो तुझे हँसता मिले
दुआ  है  तुझे  कोई  फ़रिश्ता  मिले ।
इक घर खड़ा है इन दो काँधों पर
या रब मुझे ईश्क़ ज़रा सस्ता मिले ।
सारा जहाँ घूम लिया फिर भी वहीं
चल वहाँ जहाँ वखरा रास्ता मिले ।
आम होने से डरता है ये पंछी
आसमान को भी नया फ़ाख्ता मिले ।
चाँद ने रख्खी है रोशनी उधार की
सूदखोर सुरज़ को सूद पुख्ता मिले ।
ज़ुबाँ से क्या मन्नतें करना ज़िन्दगी
सच्चा ख़ुदा जब  दिल पढ़ता मिले ।
होने दे कभी आसमान को सफ़ेद
नज़्म से क़ागज़ काला होता मिले ।
चुस्कियाँ याद हैं वो आपको ज़िन्दगी
काश कोई मेरे प्याले से  लेता मिले ।
घंटा – घंटा कर अपनी फ़ुरसत बेच खायी
हैरां न होना जो ग़रीब खर्चा करता मिले ।
एक एक कदम नज़रे झुका के रखना
नज़ाकत का तहज़ीब से रिश्ता मिले ।
सिरहाने रख ली है तस्वीर राम की
भाई कल को ये न मुझे कोसता मिले ।
बैठा है कोई फ़रिश्ता क्या महफ़िल में
जो सतिन्दर से आहिस्ता आहिस्ता मिले ।
#सतिंदर सिंह
परिचय : सतिंदर सिंह का जन्म २९ जुलाई १९८५ का है। एम.कॉम. की शिक्षा प्राप्त की है,और शिक्षक हैं। आप उत्तर प्रदेश के ललितपुर में रहते हैं। लिखना आपका शौक है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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