इस कर्महीन जमाने में।
यह कितनों को है लाई,
महलों से झोपड़ियों में।कितनी ईर्ष्या है भाई ,
इस कर्महीन जमाने में।
भाई भाई में नहीं बनती,
रिस्ते हैं अब जेभो में।
कितनी ईर्ष्या है भाई,
इस कर्महीन जमाने में।
क्यों करते हैं ईर्ष्या पता नहीं,
रिस्ते नाते भूले ईर्ष्या में।
अब कौन इन्हें समझाये भाई,
ईर्ष्या मूल नहीं है जीने में।
कौन कैसे कितनी मेहनत करता है भाई,
क्यों नहीं देखते जीवन में।
देख कर मेहनत भाई भाई की,
यदि करे मेहनत जीवन में।
मिलेगी मुमकिन सफलता ही,
अपनी राह बनाने में।
#विपिन कुमार मौर्या