कुर्बानी की भावना

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sunil patel
कुरान में लिखा है कि ख़ुदा के पास ना हड्डियां पहुंचती है ना ही मांस, पहुँचती है तो बस खुशु यानी कुर्बानी की भावना
चारों तरफ कुर्बानियों की चर्चा हो रही है ऐसे में मन में यही ख़याल अक्सर आता रहा है और आज फिर बार बार सीने में कौंध रहा है। आखिर क्यों हम ईद-उल-अजहा के दिन कथित तौर पर खुदा को खुश करने के लिए बकरे की कुर्बानी देते है। जैसा की हम सब ने सुना है की इस दिन (जिसे बकरीद कहा जाता है) हजरत इब्राहिम को अल्लाह ने सबसे अजीज चीज की कुर्बानी को कहा था। बुढ़ापे में वालिद बने इब्राहिम अपनी प्रिय चीज यानि बेटे की कुर्बानी को राज़ी हो गए लेकिन अल्लाह ने एनवक़्त पर बेटे को बकरे से बदल दिया। लेकिन सबसे ज्यादा कचोटने वाली बात ये है कि अपनी ख़ुशी के लिए इंसान क्यों किसी बेज़ुबान जानवर की कुर्बानी दे और क्यों अल्लाह भी बकरे को कुर्बान करने की बात कहेंगे ? जबकि अल्लाह के दरबार में इंसान की ओर से अपनी प्रिय चीजों(जो आज के युग में प्रिय है) मसलन इच्छाओं, लोभ, मोह, अहंकार, नफरत की कुर्बानी दी जानी चाहिए ! कुरान शरीफ में भी लिखा है कि ख़ुदा के पास ना हड्डियां पहुंचती है ना ही मांस, पहुँचती है तो बस खुशु यानी की देने की इच्छा, कुर्बानी की भावना। तो क्यों ना हम अमन चैन और सादगी के रूप में इस पर्व को मनाएं और खुदा के नेक बन्दों की तरह जीवों पर दया करें।
बात कुर्बानी को लेकर निकली है तो आज ही के दिन यानी कि 22 अगस्त को साल 1921 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ क्रांति का एक नया बिगुल फूंका था और अंग्रेजी वस्रों की होली जलाने की शुरुआत की थी। खैर गुलाम भारत में अंग्रेजों को झुकाने का ये कदम आज के दौर में लागू होना शायद असंभव है मगर हम अपने देश और संस्कृति के इतना करें कि आने वाली नस्लें अनुसरण करें 🙏
लेख का उद्देश्य ना तो किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का है और ना ही धर्म, मज़हब के तराजू में तोलने का।
#सुनील रमेशचंद्र पटेल
परिचय : सुनील रमेशचंद्र पटेल  इंदौर(मध्यप्रदेश ) में बंगाली कॉलोनी में रहते हैंl आपको  काव्य विधा से बहुत लगाव हैl उम्र 23 वर्ष है और वर्तमान में पत्रकारिता पढ़ रहे हैंl 

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।