वर्शितप तुम्हें नमन

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(तर्ज: तेरे नाम तेरे नाम….)

तेरे नाम परिवार की शान,
वर्षीतप तुझ पर है अभिमान।
ओहो ओहो तुम पर,
हम को है अभिमान।
प्यार बहुत करते है तुझसे,
माता पिता और भाई बहिन।
ओहो माता पिता और भाई बहिन।।

हर पल हर दिन,
तेरी याद आती है।
धर्मकर्म वाली तेरी बाते,
हम सब को भाती है।
जैन धर्म से नाता
तेरा पूर्वभव का है।
मेरी लाड़ो तुम पर
सबका आशीष है।
तभी तो तभी तो
बेटी धर्म ध्यान इतना,
हर्ष उल्लास के साथ करती है।
ओहो ओहो हर्ष और, उल्लास से करती हो।।

तेरी धर्म की अनुमोदना,
संजय भी करता है।
तुमको हाथों में लेकर,
सब जन चलते है।
ज्ञान ध्यान साधना तेरी,
हम सब को दिखाती है।
तेरे ही कारण हम को,
अब ख्याति मिल रही है।
तू ही अब तू ही अब,
पूरे परिवार की जान है।
ओहो ओहो परिवार की शान है।।

तेरे नाम परिवार की शान,
वर्षीतप तुझ पर है अभिमान।
ओहो ओहो तुम हमको अभिमान।
प्यार बहुत करते है तुझसे
माता पिता और भाई बहिन।
माता पिता और भाई बहिन।।

#संजय जैन

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।00

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