आज भी याद है वो पल 

0 0
Read Time6 Minute, 28 Second
sanjay
कभी कभी हमारे और आपके जीवन में कुछ इस तरह का घटित हो जाता है जिसे  हम और आप पूरी जिंदगी नहीं भूल पाते है / ठीक इसी तरह की घटना मेरे जीवन में घटी, जिसे में आज तक नहीं भूल पाया हूँ / सावन और चातुर्मास का महीना अभी चल रहे है / जिसमे लोग दान धर्म और त्याग आदि करते है ! जिससे उनका ये मनुष्य जीवन सार्थक हो जाये और उनका अगला भव भी सुधार जाये / मेरे जीवन की एक सच्ची घटना का में जिक्र कर रहा हूँ / आफिस के लंच के समय हम ३-4 लोग लंच के बाद एक होटल में लस्सी पीने गए और ऑर्डर देकर एक दूसरे की खींच तान कर रहे थे / तभी एक लगभग 70-75 साल की दादाजी  कुछ पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गईं …….! उनकी कमर झुकी हुई थी ,.चेहरे की झुर्रियों मे भूख तैर रही थी ! आंखें भीतर को धंसी हुई किन्तु सजल थीं ..! उनको देखकर मन मे ना जाने क्या विचार आया कि मैने जेब से सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया ..”दादी लस्सी पियोगी ?”  मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक …. !
क्योंकि अगर मैं बूढ़े और असहाय लोगो को 2-५ या 10 रुपए देता रहता था / लेकिन न जाने उस दिन मेरे मन में उन्हें लस्सी पिलाने का मन हुआ और मैंने दादी से पूछा की आप लस्सी पियोगी ?  दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे, वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए …. मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा .. “ये काहे के लिए अम्मा ?” “इनको मिला के पिला दो बेटा !” भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था , रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी ! एका एक आंखें छलछला आईं और भर भराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी देने को कहा .. उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गईं …!
अब मुझे वास्तविकता मे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार ,अपने ही दोस्तों और अन्य कई ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए ना कह सका !
डर था कि कहीं कोई टोक ना दे ….कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर मे बैठ जाने पर आपत्ति ना हो ..? लेकिन वो कुर्सी जिस पर मैं बैठा था मुझे काट रही थी ..! लस्सी से भरा ग्लास हम लोगों के हाथों मे आते ही मैं अपना लस्सी का ग्लास पकड़कर दादी के पड़ोस मे ही जमीन पर बैठ गया ! क्योंकि ये करने के लिए मैं स्वतंत्र था और इससे किसी को आपत्ति भी नही हो सकती थी ! ये करते हुए मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल के लिए घूरा ..लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बिठाया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा ..”ऊपर बैठ जाइए साहब !” अब सबके हाथों मे लस्सी के ग्लास और होठों पर मुस्कुराहट थी
बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसूं ..होंठों पर मलाई के कुछ अंश और सैकड़ों दुआएं थी…! मेरे जीवन का ये लम्हा मुझे आज भी याद है और आगे भी रहेगा !
ना जाने क्यों जब कभी हमें 10-20-50 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उस पर खर्च करने होते हैं, तो वो हमें बहुत ज्यादा क्यों लगते हैं ?
लेकिन सोचिए कभी….. कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं ? या बीड़ी, सिगरेट, गुटका , या अन्य निषेध पदार्थो पर खर्च कर देते है / जिसके कारण हमारा शरीर अस्वस्थ्य और बीमारियों से घिर सकता है / या उन रुपयों को आप खर्च कर दुआएं खरीदी जा सकती हैं ! और अपना मानव जन्म और इंसान के प्रति अपनी इंसानियत तो कम से कम दिखा सकते हो / बोलने वाले और देखने वाले चाहे कुछ भी आप को बोले ? इस की बिना परवाह किये मन की बात सुने और अपने इस मनुष्य जीवन को धन्य बनाये /

#संजय जैन

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

जयहिंद

Sat Aug 11 , 2018
हम गौरवशाली झंडे का शान नही झुकने देंगे भारत की पावन भूमि का अभिमान नही मिटने देंगे!! चाहे तुमको सरहद की परवाह नही हो नेता जी पर हम अपने वीरों का बलिदान नही बिकने देंगे!! गर सीमा पर पड़े जरूरत जान न्योछावर करने की हम सब लहू का कतरा,कतरा हँसकर […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।