रेशम की डोर में बांध रही उमीदों का संसार
इस धागे में छिपा है भाई बहन का प्यार
पर करती हूँ सहमा सा महसूस खुद को समाज में
पर इंद्राणी की रक्षा करने वाला , कौन होगा विष्णु इस बार
मै भी रहना चाहती हूँ सम्मान से
पर डरती भी हूँ अपने अपमान से
घूरती नजरों से गुजरना पड़ता है रोज मुझको
द्रोपदी की लाज को बचाने वाला कौन होगा कृष्ण इस बार
मै भी चलना चाहती हूँ ज़माने की चाल से
रूह काँप उठती मेरी दुनिया के हाल से
पंख फ़ैला छूना चाहती हूँ आकाश को
यमुना को बहने आजादी देने वाला कौन होगा यम इस बार
नहीं मांगती धन, दौलत, महल ,अटारी “हर्ष” आज में तुम से
शांता को जो अपनाये कौन होगा रघुनंदन इस बार,
प्रमोद कुमार “हर्ष”
सरकाघाट मंडी हिमाचल प्रदेश