कौन किस का होता है
इस बनावटी जमाने में।
जहाँ हर कोई नाटक
करता है समयानुसार।
और बदल जाते है तब
जब उसे फायदा होता है।
और भूल जाते है सब
तुम्हारे सारे उपकारो को।।
समय की आज कल
बहुत मांग होती है।
अपने फायदे के लिए
फसा देते है अपनो को।
और अपनी करनी पर
तनक भी पछताते नहीं।
तान कर सीना वो अपना
बेशर्म की तरह निकलते है।।
हमें तो फख्र होता है
अपने किये कर्मो पर।
किया है हमने भला
सदा ही अपने दिलसे।
अब उनकी सोच का
उनके दिल जहान पर।
कैसा क्या अंतर उन्हे
अब समझ में आता है।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)