दहेज मांगकर हम ये कर रहे हैं,
ना खुद जी रहे!ना मर ही रहे हैं,
सभी जानते!अभिशाप है ये,
जो माफ न हो!वो पाप है ये,
इस आग में बहुत घर जल रहे हैं
बच्चियाँ तो कोख में ही मर रही हैं,
न जाने फिर क्यों!वही कर रहे हैं,
ना खुद जी रहे!ना मर ही रहे हैं।
ये माना दहेज एक प्रथा बन गयी है,
मस्तिष्क की एक व्यथा बन गयी है,
लेकिन!
है हमने सती की प्रथा को भी तोड़ा,
है हमने बाल-विवाह को भी छोड़ा,
विधवा विवाह को है हमने ही जोड़ा,
है छुआछूत की बुराई को भी छोड़ा,
फिर क्यों न दहेज की प्रथा को तोड़ें,
इस कोढ़ को क्यों न खत्म कर ही छोडें,
अजन्मी के जन्म की खुशियाँ मनाएँ,
दहेज के बन्धन से सब मुक्त हो जाएँ,
किसी के घर को हम कभी न उजारें,
खुद खुश रहें सबको खुशियाँ दिलायें,
दहेज को हम सभी मिलकर मिटाएँ,
न दहेज लेकर मैं तो आगे बढ़ रहा हूँ,
उसी राह पर सबकी बाट जोह रहा हूँ,
अब क्यों रुक गए!अब आगे बढ़ो न,
कुछ कदम हम चले!तुम भी चलो न,
अब इस कोढ़ को मिटाना है हमको,
दहेज मुक्त समाज बनाना है हमको।
दहेज मुक्त समाज बनाना है हमको।।(इति)।।
#केशव कुमार मिश्रा
परिचय: युवा कवि केशव के रुप में केशव कुमार मिश्रा बिहार के सिंगिया गोठ(जिला मधुबनी)में रहते हैं। आपका दरभंगा में अस्थाई निवास है। आप पेशे से अधिवक्ता हैं।