किसे तू रोज़ ऐ दिल ढूंढ़ता है,
कहाँ सहरा में महफ़िल ढूंढता हैl
मुकम्मल तू कभी न हो सकेगा,
वज़ह क्या है कि हासिल ढूँढता हैl
बड़ी हैरत सभी को हो रही है,
समंदर आज साहिल ढूंढता हैl
कहीं छिप जा,नहीं तो क़त्ल होगा,
तुझे हर शहर क़ातिल ढूंढता हैl
बना जाता नहीं खुद से बड़ा तो,
हर इक इंसान काबिल ढूंढता हैl
‘लकी’ तू भी बड़ा पागल बना है,
नशे में इल्म,जाहिल ढूंढता हैll
#लकी निमेष
परिचय : लकी निमेष रोज़ा- जलालपुर ग्रेटर नॉएडा(उ.प्र.) में निवास करते हैं | कविताएँ लिखना आपका शौक है|