क्या कोरोना के चलते अपनी जीवन शैली बदलने का समय है?

0 0
Read Time2 Minute, 52 Second
  बदलाव प्रकृति का नियम है और जीवन का आधार प्रकृति है।इसलिए कोरोना हो या कोरोना जैसी कोई भी अन्य विकट वैश्विक चुनौती हो,जीवन शैली बदलने की अति आवश्यकता होती है।
  चूंकि प्रकृति जीवन जननी है और प्रत्येक जीव-जन्तु प्रकृति की कोख से उत्पन्न हुआ है।जिसे विभिन्न धार्मिक ग्रंथ एवं विद्वानों सहित वैज्ञानिक भी मानते हैं।इसीलिए प्रकृति को ही ईश्वर की संज्ञा दी गई है।
  संभवता प्रकृति कोरोना के माध्यम से मानव जाति को संकेतिक सुझाव दे रही है कि हे मानव संभल जा और प्रकृति से मत खेल।अन्यथा परिणाम इससे भी भयंकर होंगे।
  सर्वविधित है कि वर्तमान मानसिकता अंधे को अंधा,काने को काना,गंजे को गंजा, लंगड़े को लंगड़ा और मानसिक तनाव से गुजरने वाले रोगियों को पागल शब्दों के प्रयोग से आनंद लेते हैं।जबकि अब स्तिथि यह हो गई है कि ऊपरोक्त अत्याधिक मानव इसलिए पागल हुए जा रहे हैं कि उनके भ्रष्टाचार द्वारा अर्जित धन तो क्या,खून-पसीने के गाढ़े परिश्रम से कमाया धन भी काम नहीं आएगा।किन्तु फिर भी अपने शब्दों में बदलाव नहीं ला रहे।जो दुर्भाग्यपूर्ण है।हालांकि तथा कथित बुद्धिमान,ईमानदार, जनसेवक,विभिन्न धर्मों के धर्मात्मा अपने-अपने कुकर्मों का प्रायश्चित तालियां,थालियां व घंटा बजाकर एकांतवास का एक मात्र सहारा ले रहे हैं।किन्तु अपने आचार-व्यवहार में बदलाव का प्रयास नहीं कर रहे।
  इसलिए एटम बम, हाईड्रोजन बम व हवा से हवा मे मारने वाली मिज़ाईलों पर ऐंठने वाले राष्ट्र भी घुटने टेक चुके हैं।जिसके बावजूद शवों की भांति ऐंठने वाले अंहकारी,दुराचारी मानव व राष्ट्र समय की दृष्टि को गच्चा देते हुए अपनी-अपनी जीवन शैली को बदलने का प्रयास तक नहीं कर रहे।जबकि समय 'कोरोना' के रूप में नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करने का राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय अथक संदेश दे रहा है। जय हिंद

इंदु भूषण बाली

matruadmin

Next Post

पलायन का जन्म

Mon Mar 30 , 2020
हमने गरीब बन कर जन्म नहीं लिया था हां, अमीरी हमें विरासत में नहीं मिली थी हमारी क्षमताओं को परखने से पूर्व ही हमें गरीब घोषित कर दिया गया किंतु फिर भी हमने इसे स्वीकार नहीं किया कुदाल उठाया, धरती का सीना चीरा और बीज बो दिया हमारी मेहनत रंग […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।