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जल रहा जल में जलजात है आजकल,
हो रही कैसी बरसात है आजकल।
दर्द करता है तन नींद आती नहीं,
कुछ बड़ी हो गई रात है आजकल।
ऐसा लगता है कोई किसी का नहीं,
स्वार्थ में मग्न जज्बात है आजकल।
दूध के नाम पर सिर्फ जल बिक रहा,
यह नया एक अनुपात है आजकल।
कौन आया है चलकर दिखाओ हमें,
सबके हाथों में सौगात है आजकल।
अब किसी वस्तु का दाम मत पूछिए,
लाभ ही लाभ की बात है आजकल॥
#डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’
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