दृग तुम्हारे नेह का दर्पण अगर तकने लगे, और उर में स्नेह की ज्वाला अगर जलने लगे जब उमंगों की घटाएं मेघ बन छाने लगें, एकांत के वो मौन भी जब रास यूँ आने लगें चाह जब होने लगे यूँ चँद्रमुख श्रृंगार की, रिक्त-सी लगने लगेगी जब ये गागर प्यार […]
तुम्हें अच्छी नहीं लगती, पक्षियों की स्वच्छंद उड़ान क्योंकि-तुम, उड़ ही नहीं सकते। तुम्हें भाता नहीं है, पक्षियों का निडर होकर चहकना, क्योंकि-तुम जहाँ गंभीर हो, वहाँ महज़ दिखावा है। तुम्हें पसंद नहीं आता, पक्षियों का कतारवद्ध अनुशासन, क्योंकि-तुम जहाँ पर सख्त़ हो,वहाँ साम्राज्य है तुम्हारे ही अड़ियल स्वभाव का। […]