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चाह नहीं है देवों की सी सुबह-शाम पूजा जाऊं।
इतनी-सी चाह इस दिल की, मानव का मैं सम्मान पाऊँ॥
चाह नहीं है इतनी भी कि ‘रमा’ मेरी दीवानी बने।
इतनी-सी चाह इस दिल की, ‘लक्ष्मी’को मैं शीश नवाऊँ॥
स्वर्ग मुझे भी मिले,यह भी अब चाह नहीं है मुझे।
इतनी-सी चाह इस दिल की, इंसान जन्म भले ही पाऊँ॥
सागर जैसा वृहद भी, मैं नहीं चाहता हूँ बनना।
इतनी-सी चाह इस दिल की, जल बन सबकी प्यास बुझाऊं॥
चाह नहीं है इतनी भी, सूरज बन नभ में जगमगाऊँ।
इतनी-सी चाह इस दिल की, ‘दीप’-सा घर में तम मिटाऊँ॥
श्रेष्ठ बनूं सबसे,ये चाहत कैसे रख सकता हूँ मैं।
इतनी-सी चाह इस दिल की, स्वलक्ष्य सभी को मैं पाऊँ॥!
चाह नहीँ इतनी कि, भाग्य मेरा दिनकर बन चमके।
इतनी-सी चाह इस दिल की, नसीब कभी तो दमके॥
#दुर्गेश कुमार
परिचय: दुर्गेश कुमार मेघवाल का निवास राजस्थान के बूंदी शहर में है।आपकी जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी है। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ली है और कार्यक्षेत्र भी शिक्षा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। विधा-काव्य है और इसके ज़रिए सोशल मीडिया पर बने हुए हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी की सेवा ,मन की सन्तुष्टि ,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है।
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