जब से शुरू किया है मैंने
आत्ममंथन
पाया है , करता रहा हूँ मैं –
रोज ही
जाने – अनजाने
कोई न कोई गलतियां ।
होता है जब पछतावा ,
तो पाता हूँ –
अनजानी गलतियों के पीछे थी
मेरी ही लापरवाही और आलस्य ।
जाता हूँ जब –
जान बूझकर की गलतियों की तह में
तो मिलता है , इसके पीछे –
कहीँ न कहीं मेरा ही राग – द्वेष !
समझाता हूँ फिर अपने मन को
जो हो गया सो हो गया
अब करना है इसमें सुधार ।
तब पाता हूँ –
जरूरी है गलतियों से बचने के लिए
छोड़ दूँ अपना
आलस्य , लापरवाही और राग द्वेष
ताकि सही हो सके , वह उक्ति –
जब जागो तभी सबेरा ।
कोई हल है क्या
अब इसके सिवाय ?
#देवेन्द्र सोनी , इटारसी।