तुम से मेरा परिचय लगभग पैंतीस साल पुराना है।
तुम औरों के लिए भले ही हरसिंगार के एक पेड़ मात्र हो मगर मेरे दिल में तुम्हारे लिए एक ख़ास जगह है।
तुम मेरे घर के आँगन में सिर्फ एक पेड़ नहीं हो, तुम घर के द्वार पर मुस्तैद खड़े घर के सदस्य जैसे हो।
मुझे याद है जब मैं पढ़ाई पूरी कर जब पहली बार रोजी रोटी की तलाश में इंदौर आया था तब घर के मुख्यद्वार पर तुम्हीं ने मेरा स्वागत किया था।
तब से आज तक , कितना कुछ बदल गया लेकिन तुम उसी तरह अपनी छाँव लिए मेरे आँगन में खड़े हो- निःस्वार्थ।
हर साल सुबह तुम अपने फूलों की खूबसूरत चादर ओढ़ा कर आँगन को और ख़ूबसूरत कर देते हो।
बहुत सी बातें होती हैं सुबह तुमसे जब मैं तुम्हारी जड़ें सींचता हूँ।
सुबह काम पर निकलते वक़्त तुम्हारा ताकीद करना- सम्हल के चलना , अपना ध्यान रखना । शाम को घर आते ही जैसे तुम पूछते हो – दिन कैसा रहा ? सब ठीक ? कोई परेशानी तो नहीं ?
बिलकुल वैसे ही जैसे पापा पूछा करते थे। वही आवाज़ मुझे तुम्हारे पत्तों की सरसराहट में सुनाई देती है।
तुम्हे हक़ है पूछने का। तुम गवाह हो मेरे हर ग़म और ख़ुशी के।
तुम गवाह हो बहनों की विदाई के, तुम्ही ने तो किया था हंस कर स्वागत शिवानी का, जब बहू बन कर वो पहली बार इस घर में आई थी। तुमने देखा है मेरे बच्चों को बड़ा होते हुए।
तुम भी तो मेरे साथ रोए थे उस दिन जब पापा की अर्थी उठी थी।
तुम गवाह हो मेरे जीवन के हर उतार चढ़ाव के। गवाह हो तुम।
मुझे भी एक दिन इसी आँगन से विदा होना है। तुम्हें अलविदा कहना है। पापा की तरह। उनके बनाए आशियाने से। उन्ही के पास चला जाऊँगा मैं भी।
तब … मेरा बेटा तुम्हें सींचेगा …… तुम बात करना उससे ….. उसका हौसला बढ़ाते रहना …. हाल चाल पूछते रहना उसका …. वैसे ही जैसे अभी पूछते हो मुझसे ….
मुझे यक़ीन है तुम करोगे … क्यों की तुम एक पेड़ नहीं हो ….. तुम कोई हो मेरे ….
- विकास जोशी ” वाहिद “
इंदौर