आदमी की पहचान-
उनका स्वाभिमान हो.
बड़ी खूबसूरत संरचना-
है वो संसार की.
रवि की रश्मियाँ लिये-
बहती नदी की धार-सी.
सदा बचा रहे सम्मान-
जैसे रेत का निर्माण हो.
सोना और निखरता जैसे-
दहकते अंगारों के बीच.
हाथ मलते रह जाते-
कोयले बेसहारों-से नीच.
बेइमानी की लपटें बूझती-
अपने जिद पे ईमान हो.
ध्वनि में पवित्रता ज्यों-
श्वेत-सुरीले शंख की.
झीलों में निखरती छवि-
हंस के सजीले पंख की.
पावन हृदय से निकले-
मधुर कर्णप्रिय जुबान हो.
उठें, चलें, और आगे बढ़ें-
ऊपर बढ़ता धुआँ-सा.
सद्भाव का जल ले अंतस-
गहरा-शीतल कुआँ-सा.
क्या कर पायेगी कटारी-
जब सहिष्णुता का म्यान हो.
गर्दभ, श्वान, वृषभ, तुरंग-
मानव सेवा में होते लीन.
समर्पण होता पशुता में-
निश्छल और स्वार्थहीन.
जीना तभी जीना है-
जब जीवन कर्मप्रधान हो.
आदमी की पहचान-
उनका स्वाभिमान हो.
#टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला “
परिचय :
नाम :– टीकेश्वर सिन्हा.
साहित्यिक उपनाम :– गब्दीवाला.
वर्तमान पता :– डौण्डी –बालोद ( छ. ग. ).
राज्य / प्रदेश :– छतीसगढ़.
शहर :– बालोद.
शिक्षा :– एम. ए. ( अंग्रेजी ) डी. एड.
विधा :– गीत / कविता.
प्रकाशन :– दो काव्य संकलन एवं एक गद्य संकलन.
सम्मान :– 1. दो आंचलिक साहित्यिक सम्मान.
लेखन का उद्देश्य :– सामाजिक उत्थान .