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जन्म और मृत्यु तो है शाश्वत सत्य,
जो आया उसे एक दिन जाना है ।
मगर महत्वपूर्ण है बस यही कि,
जीवन को कैसे जी कर जाना है ।
कोई जीता है जीवन बुलबुलों सा,
आता और जी कर चला जाता है ।
तो कोई जीता है ओस की बूंदों सा,
थोड़ा मौसम सुहाना कर जाता है ।
मगर बिरले ही होते हैं जग में जो,
सावन की बूंद बन कर आते हैं ।
‘स्पर्श’करते सृष्टि के कण कण को,
जग में अपनी छाप छोड़ जाते हैं ।
#सुशील दुगड़ “स्पर्श”अंकलेश्वर
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