भैयाजी

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shankar lal
भैयाजी का नाम है भगवान् स्वरूप किन्तु लोग इन्हे भाईचारे के कारण भैयाजी शब्द से संबोधित करते है। शादी-विवाह, मौत-मरकत, जाति-बिरादरी, जान-बरात, स्कूल-अस्पताल, थाना-चुगीनाका कहीं पर भी आपके दर्षन हो सकते है। कभी वे किसी से बतियाते, ताल ठोंकते, हाथ उठाते, नारा लगाते, तख्ती पकड़े, माइक थामे, रेली में धरने पर, जुलुस में और आम सभा के मन्च पर भी दिखाई दे सकते है। सिर पर कभी लाल तो कभी सफेद टोपी में, कभी गले में भगवा रंग का रूमाल डाले तो कभी शुद्ध खादी के धवल परिधान में भाषण देते हुये इनके दर्षन लाभ कर धन्य हो सकते है।
यदि आपको स्कूल की फीस माफ कराना हो, जमीन का नामांतरण कराना हो, मकान की रजिस्ट्री कराना हो, बैंक से ऋण लेना हो, भामाषाही उपचार कराना हो तो पहुँच जाइये भैयाजी के पास किन्तु ध्यान रखना उनसे अकेले मिलोगे तभी काम होगा। काम कैसा भी हो आपको निराष नहीं लौटना पड़ेगा। उद्घाटन, षिलान्यास, भूमि पूजन, रैली, धरना, अनषन, प्रदर्षन इन सबके लिये भैयाजी की सेवायें सराहनीय है। वह भी निःषुल्क और समयबद्ध। सरपंच से लेकर विधायक और बाद में दिल्ली दरबार को कृतार्थ कर रहे है भैयाजी।
आजकल उनके ही गाँव के पास वाले शहर में उनकी चर्चा हर सुनागरिक की जबान पर है। मैं भी हनुमान बगीचे वाले चैराहे पर गया था। वहाँ शान्ता जी आँगनबाड़ी वाली मिल गई। वह चीख रही थी। नेता बनकर फिरने वाला ढोंगी समाजसेवक भैयाजी अबकी बार जो मेरे केन्द्र पर आया तो उसे धक्के देकर बाहर कर दूंगी। तुमने सुना नहीं नर्स बाई तो उस कलमुँहे का मुँह भी नहीं देखना चाहती। भोला कुम्हार कह रहा था, उन्होने पैसे भी ले लिये और काम भी नहीं हुआ। थानेदार से तो हर माह बीस हजार की बन्दी लेना नहीं चूकता हैं। खुद नहीं आयेगा। पोते को इस सेवाकार्य के लिये नियुक्त कर रखा है। अग्रसेन काॅलेज, खनन विभाग का वह राजीव अभियन्ता और ठेकेदार हरभजन हर महीने आकर उनकी मोटी जेब कर लौटते है। बेचारे सेठ धन्ना लाल की उस दिन सबके सामने लू उतार दी। कह रहा था-‘‘हिसाब-किताब ध्यान से रखना, नही ंतो रेड पड़वा दूंगा।’’ बेचारा गिड़गिड़ा कर कहने लगा, भैयाजी ! अगले महीने से समय पर आपका माल घर पर पहुँच जायेगा बाबू साहब ! बड़ी स्कूल वाला रामू चपरासी परेषान है इन दिनो। उसे चैबीसों घण्टे भैयाजी के घर सेवा देनी पड़ रही है। यह तो हद हो गई श्रीमती भैयाजी अपने कपड़े भी खुद नहीं धोती। पर करे तो करे क्या रामा। परिवार को जो पालना है। नौकरी स्कूल की चाकरी भैयाजी के घर की। कैसी विडम्बना है यह।
भैया भगवान् स्वरूप उर्फ भैयाजी जब भी शहर आते दो-चार चाटुकार चमचे साथ आते और पूर्व नियोजित योजनानुसार भैयाजी को वहीं ले जाते जहाँ काम के बदले भारी भरकम धनराषि उपलब्ध हो सके। कभी आपने काम के बदले अनाज वाली बात तो सुनी होगी पर धीरे-धीरे विकास की अनवरत प्रवाहित होने वाली धारा मायाजाल में फँसती दिखाई देने लगी। भैयाजी की विनम्रता, उदारता, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा, अनवरत सेवाभावना की लोग प्रषंसा करते है सबके सामने फिर पीछे मुड़कर हँस देते है। यदि आप रास्ते में मिल गये तो भैयाजी पूछेंगे, कहिये भैया ! क्या हालचाल है। घर पर सब ठीक है ना। बड़वा बेटा क्या कर रहा है और हाँ सीमा की तो शादी हो गयी होगी। बड़ी अच्छी लड़की है वह। कभी कोई काम हो तो उसे कहना आकर मिल ले। और हाँ, तुम्हारे बड़े लड़के ने बी.एड. कर लिया है ना। मास्टरों की सीधी भर्ती निकली है, उसे लेकर जयपुर आना। मास्टर बना दूंगा छोकरे को। तू भी क्या याद करेगा। जिन्दगी बन जायेगी। जब किसी का जीवन बनाना है तो त्याग तो करना ही पड़ता है। मैने हाँ में हाँ मिलाते हुये कह दिया हाँ बाबूजी ! सही है। मैने भी संक्षिप्त उत्तर से काम चलाया।
अब उन्हें उसी शान्ता बाई की याद आ गई। कहने लगे-‘‘आजकल वो शान्ता बाई दिखाई नहीं दे रही है। अब वह गाँव छोड़कर चली गई सर। कह रही थी-जब तक यह भैया का भूत यहाँ मंडराता रहेगा, मै नहीं आने वाली। मेरी जिन्दगी बरबाद कर दी साले ने। अब अपने बड़े बेटे के पास अमृतसर में रह रही है। भैयाजी ने मातादीन को अच्छा भला काम दिलाया-‘‘हवाला का’’। अपने दोस्त के यहाँ। पगार भी अच्छी थी किन्तु निकला बड़ा धोखेबाज। छोड़ आया उस धन्धे को। लाखों के वारे-न्यारे थे। देष प्रेम की बात करता है। मातृभूमि की सेवा, भारत माँ की आन-बान-षान की रक्षा यह कहता हुआ अपने भागीदार से लड़ाई करके आ गया। अब दर-दर की भीख माँगेगा। करेगा भी क्या ? इस बार तुम्हारी स्कूल मेें प्रधानाध्यापक जी बड़े नेक इन्सान है। मेहनती है। विद्यालय के विकास की चिन्ता है उन्हे। वफादार इतने कि जब से वे आये दो साल हो गये मेरी दोनो लड़कियों और राहुल को निःषुल्क पढ़ा रहे है। मिलते कहाँ है आजकल ऐसे लोग।
गाँव वालांे को सब्सिडी दिलाने, शौचालयों को मुफ्त बनवाने, वृद्धावस्था पेन्षन दिलाने में गहरी भूमिका रही थी आपकी किन्तु लोग भूल जाते है किये गये उपकार को दादा ! लोग मुँह पर मीठे है पर पीठ पीछे कह रहे है सब्सिडी से, बैंक लोन से, वृद्धावस्था पेन्षन से, नरेगा कार्य से सब में भैयाजी की ‘‘बन्धी’’ बंधी हुयी है और बातें करते है समाज सेवा की। दलित और पिछड़ों का उद्धार और गरीबी से नीचे के परिवारों को ऊपर उठाने की बातें। कब तक यह नोटंकी चलेगी। देखते है हम भी। कुछ निजी विद्यालयों में आर.टी.ई. में हुये घोटालों की जाँच करने में भैयाजी को नियुक्त किया गया। बिना विलम्ब के निरीक्षण करने पहुँच गये। भारी मात्रा में गड़बड़ थी। करोड़ों का घोटाला था किन्तु तीन दिन की जगह सात दिनों में जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई तो घोटाले की षिकायत बेबुनियाद निकली। स्कूल के संचालक भैयाजी के लिये बड़े काम के आदमी है। चुनाव में रात-दिन पसीना बहाने वाले संचालक महोदय ने विद्यालय की अनुदान राषि भी बढवा ली क्योंकि भैयाजी भी सिद्धान्तवादी थे। उन्हे अधिक आभारी बनने का शौक नहीं था। संचालक जी उपकृत हुये। कहने लगे, इस बार आपके विद्यालय में आर.टी.ई. में छात्र संख्या बढ़ जायेगी। हाँ, जरूर बढ़ाओ। देष का विकास तभी होगा जब नीचे का आदमी षिक्षित बनकर ऊँचा उठेगा। भगवान् सब ठीक करेगा। आप निष्चिंत रहे। जाते-जाते भैयाजी ने संचालक जी के कन्धे पर हाथ रख कर कहा- बोलो रावत सा. मैं कब वापस आऊँ ? यह फोन पर बता देना। बस इतना ही कहना-‘‘आपकी याद आ रही है भैयाजी। बस, मैं समझ जाउंगा।
भैयाजी की उदारता का क्या कहना, वे तो कहते है यदि आप वृद्धजन है। निःषुल्क रेल या हवाई यात्रा करना चाहते है तो कभी भी आकर मेरे फार्म हाउस वाले बंगले पर मिल ले। उम्र की चिन्ता न करे। चालीस तक भी होंगे तो चलेगा। आयु प्रमाण पत्र कुछ ले देकर बनवा लेना। बाद में मैं सब कुछ सम्हाल लूंगा। पूछो उस छोटू के बच्चे को मैने कैसे तीन बार मु्फ्त में हवाई यात्रायें करवाई है। मैं तो कहता हूँ, लोग व्यर्थ ही परेषान होते है। काम सबके होते है। समस्याये ंतो आती जाती है। सबका समाधान है। कहा गया है-‘‘जीवन में कुछ पाना हो तो खोना भी पड़ता है।’’
हमारी सरकार अच्छे दिनों के लिये ढेर सारी योजनाओं से जनता की सहायता कर रही है। व्यापार, उद्योग, बैंक, स्कूल, अस्पताल, पेन्षन, कन्या उन्न्यन, किसान विकास की कई योजनाये है जिनका उपयोग लोगों को करना चाहिये। किन्तु लोग समय पर लाभ नहीं उठाना जानते। नोट बंदी के समय रामनाथ आया था, कह रहा था, पुराने नोट पड़े रह गये दादा ! क्या करें ? मैने कहा, चिन्ता मत कर, ‘‘मैं हूँ ना, सब ठीक हो जायेगा। कल आता तो मैने पुरूषोत्तम पाण्डे का यही काम करवाया था। साथ-साथ ही हो जाता। पुरूषोत्तम से जरूर मिल लेना।
जयपुर में भैयाजी का एक होटल है, राजमन्दिर। निर्माण उस समय शुरू हुआ जब देष में नरेगा शुरू हुआ था। नरेगा से ही पचास से अधिक कुषल मजदूर और बीस कारीगरों की कठोर साधना से इस भव्य भवन का निर्माण पाँच वर्ष में पूरा हुआ। अब अपने ही गाँव के 14-15 वर्षीय नोजवान बालक अपना सेवा धर्म निभा रहे है। जिनमें 25 बालक है और 15 बालिकायें। होटल के ऊपरी भाग में आपको राजस्थानी कला व संस्कृति के दर्षन के साथ ही खान-पान भी राजस्थानी ही होगा। नीचे तलघर है यानि बेसमेण्ट। यहाँ मांसाहारी भोजन, बार बालायें, नगर वधुयें, विदेषी शराब और नषीले हेरोइन की समुचित व्यवस्था है। इस कक्ष के दरवाजे पर लिखा होगा, वन्दे मातरम्। यही पहचान है नीचे वाले तल की।
भैयाजी को मैने कहा, आपने दल बदलकर अच्छा नहीं किया। लोग आपके पुराने कारनामों को उघाड़ रहे है। कहते है किसना गुर्जर को लोन दिलाया तो आधा पैसा ही हाथ आया। बैक मेनेजर से पूंछा तो कहने लगा-‘‘भैयाजी से जाकर मिल लो।’’ बीस लाख में से केवल बारह लाख मिले। इतना भी घपला होता है क्या। पर करे तो करे क्या। ‘‘कौन सुने, किससे कहें, सुने तो समझे नाहिं, कहना, सुनना, समझना सब मन हि के मन मांहि।’’
एक दिन मास्टर अषोक के तबादले के लिये भैयाजी को मैने कहा तो वह कहने लगे- बारह वर्ष हो गये उसे यहाँ, कभी एक बार भी आया क्या मेरे पास। बुलाओ उसे अभी का अभी। अषोक जी नंगे पाँव दोड़े आये भैयाजी के पास। जैसे सुदामा जी दौड़ कर गये थे। मास्टर गिड़गिड़ाया, रोया, दाँतो में अँगुलि दबाई, पैर पड़ गया। बन्द कमरे में लम्बी बात हुई। लम्बी अवधि के ठहराव वालों की सूचि तैयार की गई। सभी को उपकृत करने का आष्वासन दिया भैयाजी ने। दोनो ओर के आष्वासन रंग लाया और चुनाव के बाद तबादला हो गया। भैयाजी का लंगोटिया भीखू भाई चुड़ीघर बाजार में मिल गया। वर्षों तक साथ निभाया भैयाजी का उसने। कुछ समय उनका निजी सचिव भी बना रहा। अब तो भैयाजी के पैर जमीन पर नहीं टिकते। अब उनकी पाँचों नहीं दसों अंगुलियाँ घी में है। क्योंकि वेतन भत्तों में भारी बढोतरी के साथ विदेषी यात्राओं में छूट तथा दैनिक भत्ते भी आसमान को छूने लगे है। सेवा केवल पाँच साल की और सेवाप्रसाद जीवन भर का। है ना आदमी तकदीर वाला। सावधान दोस्तों, अब उनका सेवा शुल्क भी आनुपातिक ढंग से बढ गया है। विद्यालय का वार्षिक उत्सव था। भैयाजी मुख्य अतिथि थे। उद्बोधन में कहा-मेरे देषवासियों, मैनें हमेषा जनभावना का ध्यान रखा है। लोगों को रास्ता दिखाया। उनकी लम्बित समस्याओं का समाधान किया। फिर भी लोग कहते है तो कहने दो। ‘‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।’’ यदि भैयाजी से मिलना चाहो तो दो माह बाद ही जायें क्योंकि वे कल ही अपने सेवाकाल के पाँचवे वर्ष में सपरिवार निःषुल्क विदेष यात्रा करेंगे। पाँच बड़े राष्ट्रों में अन्तिम यात्रा चीन की होगी। जहाँ कुछ अधिक समय ठहर कर लौटने की योजना है। धैर्य बनाये रखे। मिलेंगे अवष्य।
जयहिन्द-जयभारत।

#शंकरलाल माहेश्वरी
परिचय : शंकरलाल माहेश्वरी की जन्मतिथि-१८ मार्च १९३६ 
तथा जन्मस्थान-ग्रामआगूचा जिला भीलवाड़ा(राजस्थान)
हैl आप अभी आगूचा में ही रहते हैंl शिक्षा-एम.ए,बी.एड. सहित साहित्य रत्न हैl आप जिला शिक्षा अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे हैंl आपका कार्यक्षेत्र-लेखन,शिक्षा सेवा और समाजसेवा हैl आपकी लेखन विधा-आलेख,कहानी, कविता,संस्मरण,लघुकथा,संवाद,रम्य रचना आदि है।
प्रकाशन में आपके खाते में-यादों के झरोखे से,एकांकी-सुषमा (सम्पादन)सहित लगभग 75 पत्रिकाओं में रचनाएं हैंl 
सम्मान में आपको जिला यूनेस्को फेडरेशन द्वारा हिन्दी सौरभ सम्मान,राजस्थान द्वारा ‘साहित्य भूषण’ की उपाधि और विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ से `विद्या वाचस्पति` की उपाधि मिलना भी हैl आप ब्लॉग पर भी लिखते हैंl उपलब्धि में शिक्षण व प्रशिक्षण में प्रयोग करना है। रक्तदान के क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज सुधार, रोगोपचार,नैतिक मूल्यों की शिक्षा एवं हिंदी का प्रचार करना हैl

Arpan Jain

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।