दोस्तों,आज के इस कलयुगी और मायाचारी संसार में हम और आप अपनी संस्कृति को बिलकुल से ही खो चुके हैं।पश्चिमी सभ्यता को अपने जीवन के साथ अपने घरों में भी सजाने और व्यवहार में अपनाने लगे हैं। इस चक्कर में भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पुरानी व रूढ़िवादी बताते हुए युवा पीढ़ी उसका विरोध करने लगी है। इसी बाद को सही साबित करने के लिए छोटा-सा दृष्टांत बताना चाहता हूँ। पुरानी कहानी बताना चाहता हूँ,जिससे मैं आपको प्रणाम का महत्त्व समझा सकूँ । महाभारत का युद्ध चल रहा था,तो एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर ‘भीष्म पितामह’ घोषणा कर देते हैं कि,’मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा’ । उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई ।भीष्म पितामह की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था,इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए। तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो।श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए। शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि, अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो। द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने ‘अखंड सौभाग्यवती भव’ का आशीर्वाद दे दिया।फिर द्रोपदी से पूछा कि, ‘वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो,क्या तुमको श्रीकृष्ण यहाँ लेकर आए हैं ?’ तब द्रोपदी ने कहा कि,’हां,और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं’। तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया। भीष्म ने कहा- ‘मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते हैं।’
शिविर से वापस लौटते समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि,’तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है।’ अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य,आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन-दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती,तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती। इससे तात्पर्य्यह है कि,वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याएं हैं, उनका भी मूल कारण यही है कि ‘जाने-अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है।’ यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो।बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं, उनको कोई ‘अस्त्र-शस्त्र’ नहीं भेद सकता है। सभी से निवेदन है कि,आप इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाएगा,क्योंकि प्रणाम प्रेम है, प्रणाम अनुशासन है। प्रणाम शीतलता है और प्रणाम आदर ही सिखाता है। प्रणाम से सुविचार आते हैं ,इससे आत्मशांति मिलती है। प्रणाम झुकना सिखाता है,साथ ही प्रणाम क्रोध को भी मिटाता है। प्रणाम आँसू धो देता है,जिससे हमारी सारी कटुता ह्रदय से निकल जाती है। ऐसे ही प्रणाम अहंकार मिटाता है और हमें अच्छे और सच्चे संस्कार के साथ ही संस्कृति भी देता है।
बड़े-बुजुर्गों की छत्रछाया में रहने से सदा ही हमारा जीवन एकदम से स्वर्ग बना रहता है। हमें अपनी भारतीय संस्कृति को सदा जीवन में बनाए रखकर दिल-दिमाग में सजाए रखना चाहिए।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।