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नरेंद्र मोदी की नोटबंदी किस बुरी तरह फेल हुई है, इसका पता भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा रपट से सारे देश को चल गया है। रिजर्व बैंक तो सरकार की ही संस्था है। वह कांग्रेस या विपक्ष का संगठन नहीं है। क्या उसकी राय को भी सरकार कूड़े की टोकरी में फेंक सकती है ? देश में हर प्रधानमंत्री को इतिहास किसी न किसी बड़े काम से जोड़कर देखता है। जैसे नेहरु को लोकतंत्र के लिए, इंदिरा गांधी को बांग्लादेश के लिए, नरसिंहराव को आर्थिक उदारीकरण के लिए। अटलजी को परमाणु बम के लिए। आप ही बताइए आज तक मोदी का सबसे बड़ा या सबसे चर्चित काम क्या रहा ? नोटबंदी । इसमें जरा भी शक नहीं कि नोटबंदी के पीछे मोदी का उद्देश्य अत्यंत सराहनीय था। वह था, काले धन की समाप्ति लेकिन हमारे सर्वज्ञजी ने इस क्रांतिकारी योजना को थोपने के पहले देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों से तो कोई सलाह की ही नहीं, अपने मंत्रियों से भी इसे छुपाकर रखा। नोटबंदी के विचार के जनक और ‘अर्थक्रांति’ नामक संस्था के मुखिया अनिल बोकिल का आज तक एक बार भी सर्वज्ञजी ने अपने भाषणों में नाम तक नहीं लिया। उन्होंने अपनी अहसान फरामोशी की आदत यहां भी दिखाई। अच्छा ही किया। बोकिल सबसे पहले मुझसे मिले और फिर मोदी से मिलकर उन्होंने सारी बात उनको समझाई। लेकिन अपनी अधकचरी समझ के बूते पर सर्वज्ञजी नोटबंदी के चक्रव्यूह में घुस तो गए लेकिन उसके बाहर वे निकल नहीं पाए। अभी तक उसी में फंसे हुए हैं। मनमोहनसिंह के जमाने में जो अर्थ-व्यवस्था कई बार दो अंकों की गति से दौड़ रही थी, वह मोदी-काल में सात प्रतिशत के आस-पास रेंग रही है। अब रिजर्व बैंक ने बताया है कि 3 से 4 लाख करोड़ तक के काला धन निकलने का वादा बिल्कुल गलत साबित हुआ। 8 नवंबर 2016 को जब नोटबंदी की घोषणा हुई, देश में 15.41 लाख करोड़ के नोट चलन में थे। उनमें से 15.31 लाख करोड़ बैंक में जमा हुए। याने सिर्फ 10 हजार करोड़ रु. वापस नहीं आए। इनमें से काला धन कितना था, कुछ पता नहीं। क्योंकि कुछ नोट गुम हो गए, कुछ जला दिए गए, कुछ अभी लोगों के पास पड़े हुए हैं और करोड़ों रु. नेपाल और भूटान में अभी चल रहे हैं। लोगों ने मोदी को पटकनी मार दी। 99.3 प्रतिशत नोट उन्होंने सफेद कर लिये। नए नोटों की छपाई में लगभग 15 हजार करोड़ रु. बर्बाद हो गए। काला धन अब पहले से भी तेज रफ्तार से बन रहा है। 2000 के नकली नोट दनादन छप रहे हैं। अब नोट हल्के और छोटे हैं। लाखों रु. आप जेब में डालकर घूम सकते हैं। नोटबंदी के दिनों में बैंकों की लाइन में लगे लाखों गरीबों और घरेलू नौकरों को कुछ फायदा जरुर मिला लेकिन सैकड़ों लोगों की मौत भी हुई। पिछले दो साल में आतंकवाद और भ्रष्टाचार दोनों बढ़े। लाखों गरीब और ग्रामीण लोग महिनों बेरोजगार रहे। अर्थ-व्यवस्था किसी तरह पटरी पर लौट रही है लेकिन 80 रु. के पेट्रोल और 70 रु. के डाॅलर ने सरकार का दम फुला दिया है। पता नहीं, 2019 का चुनाव जीतने के लिए अब सर्वज्ञजी को कौनसा बोकिल कौनसी चाबी भरेगा ?
#डॉ. वेदप्रताप वैदिक
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Fri Aug 31 , 2018
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