चले आना..

0 0
Read Time2 Minute, 15 Second
satish
रूप के भँवरे चुराने जब लगें नज़रें,
जब ढले श्रृंगार का मौसम चले आना।
हो अकेलापन कभी महसूस जब तुमको,                                                                हर कदम पर साथ देंगे हम चले आना॥
आँख में है झील की गहराईयाँ,
तन-बदन में है अजंता की झलक।
रूप का दरिया यकींनन हो अभी,                                                                        तुम शिखर से पाँव की पायल तलक॥
रूप से घटने लगे जब मोह अपनों का,                                                                    बात आँखों को करें जब नम चले आना…।
हो अकेलापन कभी महसूस जब तुमको,                                                                   हर कदम पर साथ देंगे हम चले आना…॥
जब समय की गर्द से ये रूप की,                                                                          चाँदनी कमज़ोर-सी पड़ने लगे।
यौवनी उल्लास के मधुमास पर,                                                                              पतझरी साया घना पड़ने लगे॥
शाम की रंगीनियाँ बदलें उदासी में,                                                                        बढ़ चले जब ज़िन्दगी में तम चले आना…।
हो अकेलापन कभी महसूस जब तुमको,                                                                  हर कदम पर साथ देंगे हम चले आना…॥
चाह अपनी तो अलौकिक प्रेम है,                                                                         देह की चाहत नहीं हमको सनम।
तुम हमें अपना बनाओ या नहीं,                                                                        तुम रहोगे चाहतों में हर जनम॥
देह के सुख से कभी जब ऊब जाए मन,                                                                  हम बनेंगे रूह के हमदम चले आना…।
हो अकेलापन कभी महसूस जब तुमको,                                                                      हर कदम पर साथ देंगे हम चले आना…॥
          #सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

रुलाकर चल दिए 

Tue Jan 30 , 2018
खुद मुझे कितना रुलाकर चल दिए। आँख से आँसू बहाकर…चल दिएll  क्यूँ नहीं शिकवा किया हमसे कभी। गम सभी दिल में छिपाकर चल दिएll  फासले उसने रखे हमसे…सदा। और हमको ही सुनाकर…चल दिएll  मान लेते गर उन्हें अपना…कभी। क्या पता पीछा छुड़ाकर चल दिएll  मंजिलें मिलती रहीं आसाँ…किसे। खार में […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।