समय की गति को वह अपनी चाल से भाँप रहा था।सूनी सड़क पर वह अकेला ही था। इस सड़क से उसका प्रायः रोज आना-जाना होता है। पर आज के दिन सड़क को खाली पाकर वह कयास लगाने लगा था , ‘ आखिर में क्या बात है जो सड़क पर राहगीरों का तांता ज़रा भी नहीं है ? ‘
चलते-चलते ही उसने गर्दन ऊँचीकर एक लम्हे के लिए आसमान देखा । वह पूरी तरह साफ था।
अचानक सड़क के दोनों ओर की बत्तियाँ जल उठीं ! उसने तत्काल अनुभव किया कि उसके दायें-बायें जली बत्तियों ने उसकी परछाई को दो समान भाग में बांट दी है । वह चलता चल रहा था ।अब वह एक से तीन हो चुका था।
वह और उसकी दो विरोधाभासी परछाइयां।
कल उसे अहमदाबाद के लिये टैक्सी पकड़नी होगी ! अपनी विरोधाभासी परछाइयों की तरह दो विपरीत सवाल उसके मन में
घुमड़ रहे थे । ‘ लौटने में साथ आने के लिए बीवी ने कुछ नहीं बताया था , कहा था कि कल अहमदाबाद चले आओ ।’
तो क्या वाक़ई कल उसे अहमदाबाद के लिये निकल लेना चाहिए ! राम जाने उसकी उसके मायके वालों के बीच क्या बात हुई होगी ! बहुत करके मायके वालों ने उसे मेरे साथ वापिस लौट आने के लिये दबावः बनाया होगा! तभी तो मोबाइल पर ज़्यादा बात न कर उसने सिर्फ इतना ही कहा कि अहमदाबाद चले आओ ।
असमंजस से परिपूर्ण विचारों ने उसके निजत्व पर हमला बोल रखा था । घर में चार बर्तन तो बजते ही हैं ! मतभेदों की अपारदर्शी दीवार किस घर में खड़ी नहीं होतीं ? बातचीत से मसले सुलझ जाया करते हैं ।
उसने यह भी सोचा कि उसका ईगो उसका ईगो है ।
खैर , कल वह अहमदाबाद जाएगा । पर अकेला नहीँ । अपने बूढे मां-बाप के साथ । उसपार या इसपार की जो भी लड़ाई होना है , वह लड़ाई उसीके मायके के पानीपत पर हों । ताकि समझौते के पीछे अकेले वादे नहीं गारंटियों
के स्टाम्प पेपर भी हस्ताक्षरित हों।
डॉ.पुरुषोत्तम दुबे, इंदौर
परिचय:
परिचय :
डॉ.पुरुषोत्तम दुबे
इंदौर 452 009 ( म. प्र. )
सेवानिवृत्त प्राध्यापक , उच्चशिक्षा
समीक्षक एवं साहित्यकार
मुम्बई,नारनोल(हरियाणा), जालन्धर(पंजाब) जबलपुर आदि अनेक स्थलों से लघुकथा की समीक्षा के क्षेत्र में पुरुस्कृत।
वर्तमान में स्वतंत्र लेखन कार्य।