उस दिन …

0 0
Read Time2 Minute, 58 Second

समय की गति को वह अपनी चाल से भाँप रहा था।सूनी सड़क पर वह अकेला ही था। इस सड़क से उसका प्रायः रोज आना-जाना होता है। पर आज के दिन सड़क को खाली पाकर वह कयास लगाने लगा था , ‘ आखिर में क्या बात है जो सड़क पर राहगीरों का तांता ज़रा भी नहीं है ? ‘
चलते-चलते ही उसने गर्दन ऊँचीकर एक लम्हे के लिए आसमान देखा । वह पूरी तरह साफ था।
अचानक सड़क के दोनों ओर की बत्तियाँ जल उठीं ! उसने तत्काल अनुभव किया कि उसके दायें-बायें जली बत्तियों ने उसकी परछाई को दो समान भाग में बांट दी है । वह चलता चल रहा था ।अब वह एक से तीन हो चुका था।
वह और उसकी दो विरोधाभासी परछाइयां।
कल उसे अहमदाबाद के लिये टैक्सी पकड़नी होगी ! अपनी विरोधाभासी परछाइयों की तरह दो विपरीत सवाल उसके मन में
घुमड़ रहे थे । ‘ लौटने में साथ आने के लिए बीवी ने कुछ नहीं बताया था , कहा था कि कल अहमदाबाद चले आओ ।’
तो क्या वाक़ई कल उसे अहमदाबाद के लिये निकल लेना चाहिए ! राम जाने उसकी उसके मायके वालों के बीच क्या बात हुई होगी ! बहुत करके मायके वालों ने उसे मेरे साथ वापिस लौट आने के लिये दबावः बनाया होगा! तभी तो मोबाइल पर ज़्यादा बात न कर उसने सिर्फ इतना ही कहा कि अहमदाबाद चले आओ ।
असमंजस से परिपूर्ण विचारों ने उसके निजत्व पर हमला बोल रखा था । घर में चार बर्तन तो बजते ही हैं ! मतभेदों की अपारदर्शी दीवार किस घर में खड़ी नहीं होतीं ? बातचीत से मसले सुलझ जाया करते हैं ।
उसने यह भी सोचा कि उसका ईगो उसका ईगो है ।
खैर , कल वह अहमदाबाद जाएगा । पर अकेला नहीँ । अपने बूढे मां-बाप के साथ । उसपार या इसपार की जो भी लड़ाई होना है , वह लड़ाई उसीके मायके के पानीपत पर हों । ताकि समझौते के पीछे अकेले वादे नहीं गारंटियों
के स्टाम्प पेपर भी हस्ताक्षरित हों।

डॉ.पुरुषोत्तम दुबे, इंदौर

परिचय:

परिचय :
डॉ.पुरुषोत्तम दुबे
इंदौर 452 009 ( म. प्र. )
सेवानिवृत्त प्राध्यापक , उच्चशिक्षा
समीक्षक एवं साहित्यकार
मुम्बई,नारनोल(हरियाणा), जालन्धर(पंजाब) जबलपुर आदि अनेक स्थलों से लघुकथा की समीक्षा के क्षेत्र में पुरुस्कृत।
वर्तमान में स्वतंत्र लेखन कार्य।

matruadmin

Next Post

मेरी भाषा

Tue Mar 24 , 2020
मेरी भाषा सन्नाटा बनी तब भी हम चुप रहे। अंग्रेजी की छाया में छिपी तब भी हम चुप रहे। यह सन्नाटा धमाकों के साथ प्रवेश कर गया। भाषा लुप्त सी होती , दिखी ,तो भी हम चुप रहे। धीरे धीरे अपनी भाषा धूमिल सी होने लगी, नजरिया बदलने लगा। तब […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।