सन् उन्नीस सौ पचास में गणतंत्र जन्मा
सतत् यह ऊँगली थामे नेताओं की चलता
संसदों की गुँजारों से बनता बढ़ता रहता
अच्छा लगता न्यारा सारा संविधान हमारा
अख़बारों की कुख़बरों से मन उचट जाता
आती तेरी याद बहुत सारी भारत माता
एक ही बात निकलती दिल जब भर आता
संविधान में चाहिए अब नहीं क्षमा भावना
खत्म हो अमीरी, गरीबी, जाति-भेद की भाषा
कुराजनीति, लिंगभेद, अंधविश्वास, अशिक्षा
बलात्कारी आतंकी को हो त्वरित फाँसी की सज़ा
तब फिर हमारा भारत सिरमौर बनेगा
विश्व गणनायक वो गणतंत्र कहलाएगा
#देवयानी नायक, झाबुआ,
जिला झाबुआ म.प्र.