युग

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rajeshwari
त्रेता युग बीता घोर कलयुग आया,
दम घुटने लगा इंसान का
प्रकृति के खिलाफ जाकर
सांसों के भी लाले पड़ गए।
जहरीली बन गई हवा भी,
पर्यावरण को ख़तम किया
इंसान में से ख़त्म भावनाएं,
मोबाईल का गुलाम बना।
इंसानी रिश्ते हुए चकनाचूर,
जानवरों को साथ लिया
खुद का अपनापन खो डाला,
पुरखों को नजरअंदाज किया।
कार्टूनों की दुनिया में बसकर,
मस्तिष्क को कब्रिस्तान किया
कुछ भी उल्टा-सुल्टा खाकर,
हाथी-सा अभिमान किया।
बना मशीन का दास आदमी,
और खुद को सम्मान दिया
अजन्मे को भविष्य दिखाता,
कैसा मूर्ख गुमान किया।
नोटों की ढेरी पर बैठा था,
खुद को खुदा मान लिया
परतन्त्र हुआ पल-पल रोया,
देखो कैसा हाल हुआ।
एक-दूजे को खाता आदमी,
अपना-पराया भूल गया
गूगल पर ढूंढे दूध के रिश्ते,
नासमझ अपने और पराए।
फेसबुक की दुनिया ही,
अपनी,ये कैसा परिवार हुआ
मशीनी दुनिया में निकृष्ट,
देखो सभ्यता का हास हुआ।
झुक गए कंधे,
सब-कुछ छूट गया
सब-कुछ कचरा बना,
ये कैसा अंतकाल हुआ॥
        #श्रीमती राजेश्वरी जोशी

परिचय : श्रीमती राजेश्वरी जोशी का निवास अजमेर (राजस्थान) में है। आप लेखन में मन के भावों को अधिक उकेरती हैं,और तनुश्री नाम से लिखती हैं।

matruadmin

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