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पानी में कागज की वो नाव चलाना,
खेल खेलना और खिलाना..
मजे करते थे हम भरपूर,
छल-कपट से थे दूर।
खेल-खिलौने, हमारी मिट्टी,
नाटक में चंदा मामा को लिखते थे चिठ्ठी..
चोर सिपाही,गिल्ली डंडा,चंगा अठ्ठा
मास्साब हमसे कहते थे और पठ्ठा।
बरसात में वो भीगना,धूप में वो खेलना,
सर्दियों में अलाव तापना,उस पल का कोई मेल न..
सुनना वो कहानियों को और तानों को भी,
क्या रोक सकता था कोई हम मस्तानों को भी।
बस वो तो समय है,गुजर जाता है,
बीत गया बचपन अब,
न वापिस आता है।
#नवीन कुमार जैन
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