हे नारी,क्यों तुम ऐसी हो…
निर्मल गंगा जैसी हो,
हे नारी,क्यों तुम ऐसी हो…।
अपने गुण से,
अपने सौंदर्य से
सबको मोहने लगती हो,
हे नारी,क्यों तुम ऐसी हो…।
सबको क्यों, तुम अच्छी लगती हो..
इसमें कोई शक नहीं..
कि तुम बड़ी अच्छी लगती हो…
मन में बनकर चाहत…
बड़ी अच्छी लगती हो…,
इतनी तुम प्यारी हो…
प्यारी-प्यारी लगती हो…
हे नारी,क्यों तुम ऐसी हो…।
किसी की मां तो,
किसी की बेटी तुम…
तो किसी की बहन,
किसी की चाची तुम…
किसी की मामी,
तो किसी की सखी लगती हो…।
सहज भाव हिलमिल जाती,
पलभर में रिश्ता जोड़ लेती,
सर्वव्यापी जल जैसी,
हर रिश्ता सहेजने वाली,
रिश्ते प्यार के दिल में..
संभालने वाली तुम…।
कोमल हृदया हो तुम…
तरल भाव की कन्या तुम,
चंद्रकिरण-सी शीतलता तुममें..
चंदन-सी सुंगंध फैलाने वाली तुम…
पुष्प की कोमलता है
तुममें…।
ईश्वर चिंतन में सदा रममाण तुम ..
किसी को मरियम,
भक्ति ज्योत-सी जलाने वाली
किसी को मीरा लगती हो,
हे नारी,क्यों तुम ऐसी हो…।
सेवाभाव में दंग समाधिस्त तुम…
तुलसी-सी पवित्रता तुममें ..
तितली-सी चंचलता तुममें…
गुंजन तुम,वीणा नाद तुम,
पायल की झंकार तुममें,
बाँसुरी की कोमल तान तुम हो…।
कभी मधुर वाणी है तुम्हारी…
तो कभी चपला- सी…
कड़कती आवाज तुम्हारी…
शूरवीरा तुम, विजयशील तुम,
हे नारी,क्यों तुम ऐसी हो…।
कितने तुम्हारे, रंग-रुप…
पल-पल बदलती…
हर पल मचलती…
जैसे छांव-धूप…
खुद से निखरती…
सजती संवरती…
हर घाव सहती…
हर बार बहती…
वो नदी हो तुम…।
फिर भी मासूम- सी दिखती हो,
प्यारे से फूलों जैसी खिलती हो,
शक्ति हो तुम…
आदि से अनादि तक…
सबकुछ होकर भी…
सबसे पहले और आखिर भी…
हे जगत जननी…
मातृ हो तुम,मातृ हो तुम…॥
#संजय वासनिक ‘वासु’
परिचय : संजय वासनिक का साहित्यिक उपनाम-वासु है। आपकी जन्मतिथि-१८ अक्तूबर १९६४ और जन्म स्थान-नागपुर हैl वर्तमान में आपका निवास मुंबई के चेंबूर में हैl महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर से सम्बन्ध रखने वाले श्री वासनिक की शिक्षा-अभियांत्रिकी है।आपका कार्यक्षेत्र-रसायन और उर्वरक इकाई(चेम्बूर) में है,तो सामाजिक क्षेत्र में समाज के निचले तबके के लिए कार्य करते हैं। इकाई की पत्रिका में आपकी कविताएं छपी हैं। सम्मान की बात करें तो महाविद्यालय जीवन में सर्वोत्कृष्ट कलाकार-नाटक सहित सर्वोत्कृष्ट-लेख से विभूषित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-शौकिया ही है।
धन्यवाद