बह जाने दो

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shirin bhavsar
हँसी आती है मुझे,
देखकर चेहरा तुम्हारा….
सुनो…
नाराज़ न हुआ करो
यूँ हँसता देख मुझे….
तुम पर नहीं हँसती हूँ मैं
जब तुम
भावुक हो जाते हो न…
तो आँखें नम हो जाती है तुम्हारी…
एक कोमलता और
ममत्व आ जाता है
चेहरे पर तुम्हारे….।
हाँ,हँसती हूँ मैं
तुम्हारे चेहरे पर आते
असमंजस के
भावों को देखकर….,
खुद को कठोर कर लेने के
असफल प्रयत्न
को देखकर…,
क्यों अंकुश लगाते हो तुम
भावों पर अपने….
ये माना मैंने कि
पुरुष हो तुम,
तो क्या…पुरुष होना
कठोरता का पर्याय है….।
सुनो…बह जाने दिया करो
तुम स्वयं को भावों के साथ,
बह जाने दिया करो
आँखों से…खुशियों को…दर्द को,
कुंद न किया करो
इन्हें सीने में….,
जब संवेदनाएं
प्रकट हो जाती हैं न
तो धनात्मकता
प्रवाहित होने लगती है
जीवन में….।
जानते हो…
तुम मुझे ऐसे ही पसंद हो…,
भावुक,संवेदनशील,
थोड़े से कमज़ोर
तथाकथित कठोरता से
कहीं ही अधिक….॥

                                     #शिरीन भावसार

परिचय:शिरीन भावसार का जन्म नवम्बर १९७५ में तथा जन्मस्थान-इंदौर (म.प्र.) हैl आपने एम.एस-सी. (वनस्पति विज्ञान) की शिक्षा रायपुर (छग) में ली है,और शादी के बाद वर्तमान में वहीँ निवासरत हैंl कार्यक्षेत्र की बात करें तो आप कला-शिल्प तथा लेखन में सक्रिय होकर सामाजिक क्षेत्र में दृष्टि बाधित संस्था और विशेष बच्चों की संस्था से जुड़ी हुए हैंl लेखन में आपकी विधा-नई कविता,छंदमुक्त कविता,मुक्तक एवं ग़ज़ल हैl कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं सहित वेबपत्रिका में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-अपने विचारों को दृढ़ता से रखना,सामाजिक मुद्दों को उठाना,मनोभाव की अभिव्यक्ति और आत्मसंतुष्टि हैl

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