‘उपवास’! क्यों और कैसे?

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● डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

सृष्टि की सबसे प्राचीन संस्कृति सनातन संस्कृति है और इसके प्रत्येक उपक्रम, विधान, कर्मकाण्ड और प्रत्येक क्रिया के केन्द्र में ‘समाज’ विद्यमान है। उसी पुरातन संस्कृति में आराधना का एक विधान उपवास भी है।
लोकाचार अथवा श्रद्धानुसार लोग उपवास करते हैं। लेकिन उपवास का सही अर्थ भूखे रहना नहीं, बल्कि अपने अंतस के निकट रहना है। आचार्य रजनीश (ओशो) के अनुसार आत्मा के पास निवास करना उपवास है। जैसे उपनिषद् का अर्थ है गुरु के पास बैठना।
जब आप अंतस के समीप होंगे तो फिर दुनिया से बेख़बर रहेंगे, अर्थात् आपको अपने शरीर के बारे में भी पता नहीं होगा, ऐसे समय भोजन का त्याग तो हो ही जाएगा। यानी भूखे हो जाना उस प्रक्रिया का हिस्सा बन जाता है पर अनिवार्यता या बाध्यता नहीं होती।
अब लोकाचार के आलोक में उपवास को देखें तो सनातन वैभव के अनुसार समाज की समरसता महनीय है। उसी में जब आप उपवास के दौरान अपने हिस्से का भोजन नहीं ग्रहण करते तो फिर उस भोजन को समाज के उस व्यक्ति तक पहुँचाना चाहिए, जिसके हिस्से में भोजन नहीं पहुँच पाया है, तभी उपवास की सार्थकता है, अन्यथा लोक दिखावा मात्र।
विचार कीजिए, जैसे शरीर में परमात्मा ने जितने भी अंग दिए हैं, उनका उपयोग है, ईश्वर ने कोई भी अंग ऐसा नहीं दिया जो अतिरिक्त महसूस हो अथवा उसका कोई प्रयोजन न हो। तब उसी परमात्मा की भक्ति और आराधना के लिए ऋषियों-महर्षियों और मनीषियों के द्वारा निर्मिति पूजा-उपासना पद्धतियों में कोई ऐसी प्रक्रिया तो हो ही नहीं सकती जो अनावश्यक हो। यदि विधान में उपवास को जोड़ा है तो निश्चित तौर पर लोक मंगल और सामाजिक समरसता को स्थापित करने के वृहद उद्देश्य की स्थापना के लिए ही उसे शामिल किया होगा। समाज का कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए, इसीलिए उपवास के समय आपके हिस्से का निर्मित अन्न-भोजन उस ज़रूरतमंद तक पहुँचाने, उस भूखे उदर को भरने का निमित्त परमात्मा ने आपको बनाना चाहा है, ताकि समाज के प्रत्येक पेट में भोजन हो।
आज श्रावण मास का अन्तिम सोमवार है, परम कृपालु प्रभु शिव शम्भू के प्रति श्रद्धाभाव से रखे उपवास को सार्थक बनाएँ, और यह संकल्प भी लें कि हम जब-जब भी उपवास रखेंगे, या प्रत्येक सप्ताह में एक दिन उपवास रखकर अपने हिस्से का भोजन किसी अन्य भूखे पेट तक उपलब्ध करवाएँगे। यकीन जानिएगा, समाज में कोई मनुष्य भूखा नहीं सोएगा। प्रभु का उद्देश्य सार्थक होगा, प्रभु कृपा की अक्षय निधि से आपका भंडार भरेगा।
पुनः आपके भीतर विराजित परमशक्ति को प्रणाम सहित शुभ सोमवार।

#डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
ख़बर हलचल न्यूज़, इन्दौर
09406653005
www.arpanjain.com

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।