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बड़ी भीड़ थी वहां,
कुछ शोर भी मच रहा था।
जो देखा आगे जाकर
इंसानियत का अंतिम संस्कार
हो रहा था।
बड़ा घृणित मंजर था वह,
एक महापाप हो रहा था।
वहशी बने खड़े थे कुछ लोग,
एक मासूम मृत-सा वहीं पड़ा था।
उसके हाथों में एक खाने की थैली थी,
चेहरे पर लाचारी का थप्पड़ जड़ा था।
भूख की अनल से जल चुका थी देह,
और सहमी आखों में बस दर्द भरा था।
पूछा मैंने-क्या हुआ है यहां ?
पता चला-वह चोरी कर भाग रहा था।
पर नन्हें पावों में इतनी गति नहीं थी,
और सियारों ने नोंच लिया था।
लगा-भला हुआ जग छोड़ गया,
आखिर भूखे पेट वह कहां जिया था॥
# मुकेश सिंह
परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl
शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl
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