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जैसे भोर गगन का सूरज,या सागर का हो मोती,
यूँ ही मैं कुछ कहता तुमको,अगर सामने तुम होती।
कैसे कह दूँ भाल तुम्हारे,सजा नेह का चँदा है,
है प्रतीक ये परिणय पल का,और हरीप्रिय वृंदा है।
पावन पुण्य प्रथा प्रिय पावन,संस्कार है माटी का,
धन्य-धन्य वे माताएं जो,वहन करें परिपाटी का।
सुंदर-सुघड़-सलोनी सूरत,सजी भाल पर बिंदिया हो,
नयना बंद किए हैं जैसे,स्वप्न सजी-सी निंदिया हो।
उलझी-उलझी लट है गोरी,और शिकन क्यूँ भाल तुम्हारे,
जैसे साजन की बांहों में,बिखर गए अरमान हों सारे।
जैसे कोई जलता दीपक,बाँट रहा हो निज ज्योति,
यूँ ही मैं कुछ कहता तुमको,अगर सामने तुम होती॥
#ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
परिचय: ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है। मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य हैं,परन्तु लगभग ७० वर्षों पूर्व परिवार यू़.पी. के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम. भी वहीं हुई। वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं। संस्कार,परंपरा,नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। ४० वर्षों से लिख रहे हैं। लगभग सभी विधाओं(गीत,ग़ज़ल,दोहा,चौपाई, छंद आदि)में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।
काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० के करीब का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर ढेरों बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं।
आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं।
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