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पन्नों में छिपा इतिहास ढूंढते ढूंढते,
जी भर गया अब तो बकवास ढूंढते-ढूंढते।
नजारे भी जहां नजरों की बात करते थे,
उम्र गुजर गई वो एहसास ढूंढते-ढूंढते।
जी-जान जिसपे वार के हम मर मिटे यारों,
वो उलझे रहे कफ़न भी खास ढूंढते-ढूंढते।
अपने आप को झूठा-सा ही दिलासा देकर,
मैं थक गई खोया विश्वास ढूंढते-ढूंढते।
हां देखा है जमीन पर अम्बर उसने चलते,
क्या करें हम थम गए प्यास ढूंढते-ढूंढते।
लो मोहब्बत में हम रुसवा भी हो गए ‘रानू’,
टूटा दिल उनके आसपास ढूंढते-ढूंढते॥
#रानू धनौरिया
परिचय : रानू धनौरिया की पहचान युवा कवियित्री की बन रही है। १९९७ में जन्मीं रानू का जन्मस्थान-नरसिंहपुर (राज्य-मध्यप्रदेश)है। इसी शहर-नरसिंहपुर में रहने वाली रानू ने जी.एन.एम. और बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-नरसिंहपुर है तो सामाजिक क्षेत्र में राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी हुई है। आपका लेखन वीर और ओज रस में हिन्दी में ही जारी है। आपकॊ नवोदित कवियित्री का सम्मान मिला है। लेखन का उद्देश्य- साहित्य में रुचि है।
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बहुत सुन्दर रचना