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न जाने कहाँ जाकर
बैठ गया वह प्यारा-सा
चांद का टुकड़ा,
जिसे मैं दिन और रात
अपनी पलकों से निहारता
रहता था।
जिसके बिना मुझे
नहीं मिलता था,
सुकून एक पल का।
आज मुझे वह फीका-फीका
सा लग रहा है चांद।
और धीरे-धीरे घट रहा है,
अमावस की तरह
और मुझे लगता है
कि यह लौटकर कभी नहीं आएगा
ये चांद तो 15 दिन बाद
दिखेगा पूर्णिमा को,
लेकिन न जाने मेरा
वो चाँद कब आएगा
मुझे सुकून देने के लिए।
..लेकिन आज भी उम्मीद है,
उस चाँद के आने की॥
#कृष्ण कुमार सैनी ‘राज’
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