जलाए जा रहे हर तरफ लाखों दीए जब,
झालरों की टिमटिम से जहां रोशन हुआl
सितारे भी शर्माने लगे चकाचौंध से,
अंधेरा जिंदगी में इस तरह दाखिल हुआll
सोने-चांदी की चमक में सबको निहारे,
लाखों के जेवर सुबह औ शाम थामेl
मुस्कराहट बेचता रहता है दिनभर,
मिट्टी के दीए भी मिलते नहीं बिना मांगेll
पटाख़ों की आवाज से गूंजा है गगन,
वो तो तन्हाईयों की आवाज में है मगनl
गगनचुंबी फुलझड़ियां रोशनी बिखेरती वहाँ,
दंत पंक्तियों की चमक में उसकी छिपी थातीll
आ गई है देखो मुँह चिढ़ाती दीवाली,
है वह खुद खाली,थाली भी खालीl
खुशहाली की किस लहर पर हो सवार,
सूखा है समन्दर,कैसे आए सुनामीll
ग़ज़ल की महफ़िल में खुली कविता की तरह,
तरन्नुम औ बहर में डूबता-उतरता फिराl
शेरों औ रूबाइयों के कदमों तले,
बेतरतीब-सा देखो वह है आ गिराll
परिचय: जे.पी.पाण्डेय का निवास उत्तराखंड राज्य के शहर मसूरी में है। आपकी जन्मतिथि-९ अप्रैल १९७६ तथा जन्म स्थान-भिलाई है। एमए और एलएलबी की शिक्षा हासिल करके बतौर कार्यक्षेत्र आप प्रशासनिक सेवा(इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस)में हैं।लेखन क्षेत्र में आपकी विधा-कविता, कहानी और संपादकीय लेख है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रुप से लेखन जारी है। लेखन में आपको ‘आगमन साहित्य सम्मान’ मिला है तो प्रशासनिक सेवा में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया है। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक सरोकार निभाते हुए विसंगतियों का चित्रण करके उन्हें सुधारना है।