जिन्दगी न मिलेगी २/१२

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जितना जीना चाहो जी लो,
जिन्दगी न मिलेगी दोबारा।
एक बार ये पंछी उड़ा तो,
हाथ नहीं आएगा दोबारा।
सब कुछ फिर मिल जाएगा,
मां-बाप नहीं मिलेंगे दोबारा।
दरकने मत देना इस डोर को,
टूटे रिश्ते जुड़ते नहीं दोबारा।
शुक्र है सांसें आ-जा रही हैं,
रूकी तो चलेगी नहीं दोबारा।
ये जिंदगी की फिल्म है भाई,
दिखाई नहीं देती है दोबारा।
एक ही बार में ‘निर्मित’ होती है,
ये ‘पुनिर्मित’ नहीं होती दोबारा।
आपसे मित्र और मुझसे दोस्त,
जिन्दगी को न मिलेंगे दोबारा।
जो भी करना है आज कर लो,
फिर कल न मिलेगी तारीख २/१२॥                                                        #डॉ. देवेन्द्र  जोशी

परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।

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